कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख न कर यक़ीं सब पर, ये दुनिया बड़ी ख़राब है दोस्त, आग घर में लगाता है कोंन, नज़र उठा कर तो देख भला आदमी के गिरने में, कहाँ लगता है वक़्त अब, कोई कितना गिर चुका है, नज़र उठा कर तो देख क्यों ईमान बेच देते हैं लोग, बस कौड़ियों में अपना, कितना बचा है ज़मीर अब, नज़र उठा कर तो देख शौहरत की आड़ में, खेलते हैं कितना घिनोंना खेल, हैं कहाँ बची अब शराफ़तें, नज़र उठा कर तो देख जो हांकते हैं डींगें, औरों का भला करने की दोस्त, कितने सच्चे हैं वो दिल के, नज़र उठा कर तो देख तू समझता है सब को ही अपना, निरा मूर्ख है “मिश्र”, कितने कपटी हैं अब लोग, नज़र उठा कर तो देख +20
