ghazal nazar utha kar to dekh

ग़ज़ल : नज़र उठा कर तो देख

कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख न कर यक़ीं सब पर, ये दुनिया बड़ी ख़राब है दोस्त, आग घर में लगाता है कोंन, नज़र उठा कर तो देख भला आदमी के गिरने में, कहाँ लगता है वक़्त अब, कोई कितना गिर चुका है, नज़र उठा कर तो देख क्यों ईमान बेच देते हैं लोग, बस कौड़ियों में अपना, कितना बचा है ज़मीर अब, नज़र उठा कर तो देख शौहरत की आड़ में, खेलते हैं कितना घिनोंना खेल, हैं कहाँ बची अब शराफ़तें, नज़र उठा कर तो देख जो हांकते हैं डींगें, औरों का भला करने की दोस्त, कितने सच्चे हैं वो दिल के, नज़र उठा कर तो देख तू समझता है सब को ही अपना, निरा मूर्ख है “मिश्र”, कितने कपटी हैं अब लोग, नज़र उठा कर तो देख +20

parayi si lagti hai

ग़ज़ल : पराई सी लगती है   

हमें तो हर वफ़ा में, बेवफ़ाई सी लगती है अब तो अच्छी बात भी, बुराई सी लगती है जब मिलती हैं सजाएँ, बिन ख़ता के यारो, तो दिल को हर चीज़, पराई सी लगती है    कुछ कहें तो लोग, समझते… Read More

ग़ज़ल : बुलाते क्यों हो

न हो जहां क़द्र, उधर जाते क्यों हो जो रूठा बेसबब, उसे मनाते क्यों हो दिल ओ बदन की ज़रूरतें अजीब हैं, फिर जो न पचता, उसे खाते क्यों हो जो बदल दे अपना रुख़ ज़रा लोभ में, फिर उसको… Read More

ghazal zindagi ke uljhno se

ग़ज़ल : ज़िन्दगी की उलझनों से

ज़िन्दगी की उलझनों से, हम मजबूर हो गए ! अब हर किसी की नज़र से, हम बेनूर हो गए ! कभी सोचा था कि चलना ही ज़िन्दगी है यारा , मगर सफर के हालात से, हम मजबूर हो गए !… Read More

ghazal koi milene nahi aata

ग़ज़ल : कोई भी मिलने नहीं आता

फुर्सत है तो कोई भी, मिलने नहीं आता हाल दिल का कोई, समझने नहीं आता हर कोई गुमसुम सा बस क़ैद है घर में, अबतो कोई यार भी, अटकने नहीं आता वीरान सडकों पर दिखते हैं बस मवेशी, अब तो… Read More

love letter

ग़ज़ल : ख़त

हिज्र में उसका मेरे ही सामने ख़त को यूं फाड़ देना कि तु भी जाकर के मेरे सारे ख़त-वत को यूं फाड़ देना आज भी उसके बदन की खुशबू आती है उसके ख़त से, कि नही होता हैं आसां अपनी… Read More

poem chaht to bas

ग़ज़ल : चाहत तो बस

निशानी देने वाले अपनी कहानी भूल गए कहानी तो छोड़िए आंख का पानी भूल गए आप ही क़ैद किये थे दिल को तह खाने में, और आप ही नज़रों की निगरानी भूल गए बस उन्हें यक़ीन नहीं कि वो क़यामत… Read More

ग़ज़ल : इक क़ायदा

मुहब्बत में फ़क़त इक क़ायदा हो उसका क्या कहना मुहब्बत करता है जो जायज़ा हो उसका क्या कहना। निगाहों के इशारे, ख़त, जुबां धोखा दे सकते हैं। जिसे जज़्बात के तह का पता हो उसका क्या कहना जो उसके लब… Read More

ग़ज़ल : मंज़िलें पास नहीं होतीं

मंज़िलें पास नहीं होतीं, ज़रा दौड़ना सीखो  सफर की रुकावटों को, ज़रा तोड़ना सीखो  ज़िंदगी की राह में मिलते हैं अनेक चौराहे, यूं हौसले की गाड़ी को, ज़रा मोड़ना सीखो होती नहीं हर चीज़ हर किसी के मुकद्दर में, बाक़ी ख़ुदा की मर्ज़ी पे, ज़रा छोड़ना सीखो न मिलता कभी सुकून अपनों को भुला कर, उनसे टूटे हुए रिश्तों को, ज़रा जोड़ना सीखो चलते हैं जुबाँ के तीर हर तरफ से कितने ही, तुम बधिरता के कवच को, ज़रा ओढ़ना सीखो निशब्द होना भी तो ज़िंदगी पे बोझ है ‘मिश्र’, जिगर में भरे ज़हर को, ज़रा निचोड़ना सीखो 00

ग़ज़ल : कल की फ़िक्र में

कल की फ़िक्र में, आज का बिगाड़ मत करिये  मरने से पहले ही, कफ़न का जुगाड़ मत करिये भला कल तक रहेगा कौन ये किस को पता है, यूं हाथों में आईं, ख़ुशियों का कबाड़ मत करिये अपने ख्वाबों को झूठी उड़ान मत दो तो बेहतर, सच तो सच ही रहेगा, राई का पहाड़ मत करिये मिलती है मुश्किलों से अपनों की मोहब्बत यारा, रखिये ज़रा संभाल के, इसका दोफाड़ मत करिये चमन में तो गुल खिलेंगे अपने ही वक़्त पे “मिश्र”, पर जल्दी की चाहत में, इसका उजाड़ मत करिये  +10