मुहब्बत में फ़क़त इक क़ायदा हो उसका क्या कहना
मुहब्बत करता है जो जायज़ा हो उसका क्या कहना।
निगाहों के इशारे, ख़त, जुबां धोखा दे सकते हैं।
जिसे जज़्बात के तह का पता हो उसका क्या कहना
जो उसके लब न कह पाए वो उसकी शायरी कहती।
जो माशूक़ा किसी की शायरा हो उसका क्या कहना
तेरी जुल्फ़ें हवा से बिखरे आहिस्ता सँवारू मैं
गले से लग जा तू साथ-ए-फिज़ा हो उसका क्या कहना।
उलझना चाहता हूं उलझनो में उम्र भर यूं ही
फ़क़त तेरे बांहो का शमा हो उसका क्या कहना।
वो मज़हब से नहीं फिर भी दुखी हूं तो वो रोता है
जो भी प्यार-ए-मआनी जानता हो उसका क्या कहना।
कहा भी कुछ नहीं जाता सहा भी कुछ नहीं जाता
कभी जो दो दिलों में फ़ासला हो उसका क्या कहना। 

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