बहुत दूर है तुम्हारे घर से,
हमारे घर का किनारा।
पर हवा के हर झोके से।
पूंछ लेते है मेरी जान,
हाल चाल तुम्हारा।।
लोग अक्सर कहते है।
जिन्दा रहे तो फिर मिलेंगे।
पर मेरी जान कहती है।
की निरंतर मिलते रहेंगे ,
तो ही जिन्दा रहेंगे।।
दर्द कितना खुश नसीब है।
जिसे पा कर लोग, 
अपनों को याद करते है।
पैसा कितना बदनसीब है,
जिसे पा कर लोग।
अक्सर अपनों को
भूल जाते है।।
इसलिए तो छोड़ दिया सबको।
बिना वजह परेशान करना।
जब हमें अपना
समझता ही नहीं।
तो उसे अपनी याद दिला कर,
मुझे क्या करना।।
जिंदगी गुज़र गई, 
सबको खुश करने में।
जो खुश हुए वो
अपने नहीं थे।
और जो अपने थे,
वो खुश हुए नहीं।।
इसलिए संजय कहता है।
कर्मो से डरिये, 
ईश्वर से नहीं।
ईश्वर माफ़ कर देता है।
परन्तु खुद के कर्म नहीं।।

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