हिज्र में उसका मेरे ही सामने ख़त को यूं फाड़ देना
कि तु भी जाकर के मेरे सारे ख़त-वत को यूं फाड़ देना
आज भी उसके बदन की खुशबू आती है उसके ख़त से,
कि नही होता हैं आसां अपनी हसरत को यूं फाड़ देना
आशनाई मे अमानत था उसका ख़त मे मेरे दस्तख़त थे
कितना अखरेगा उसे अपने अमानत को यूं फाड़ देना
ख़त में तेरा नाम लिक्खा था मिटा दूं उसको किस तरह से
कि गवारा हो नहीं सकता इबादत को यूं फाड़ देना