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व्यंग्य : मेला ऑन ठेला

“सारी बीच नारी है, या नारी बीच सारी सारी की ही नारी है, या नारी ही की सारी” जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने  की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का… Read More

कविता : पाकिस्तान का जन्म

हुआ था जन्म जब तेरा, तबाही बहुत मची थी। इंसानियत की सारी हद, पार लोगो ने कर दी थी। भाई भाई से अपास में बिना वजह लड़े। पिता यहां और मां वहां, ऐसा कुछ इतिहास रचा। तभी तो आज तक,… Read More

भोजपुरी कविता : अब माईये-बाबू संगे जीयब आ मरब

हम  कहीं  ना  जाइब  अब ना  केवनो  परदेस ना  केवनो  विदेश ना  बाहर  कमाये ! अब  हम माईये-बाबू  के  साथे  रहब भाईये-बहिनिये  संगे  खेती में  खटब ! जेवन  मोर माई -बाबू,  भईयवा-बहिनिया खईंहें-पीहें ऊहे  खाइब ऊहे  पीयब पनडूक आ फुरगुदिया… Read More

कविता : तुम स्वच्छंद मत होना

यह समाज तुम्हारे लिए कांटो भरा पथ होगा पर तुम डरना नहीं, हाँ पर हर बात पर झगड़ना भी नहीं, जब तुम बाहर जाओगी न तो…… सबकी निगाहे तुम पर होंगी……… तुम कहाँ जाती हो..? क्या करती हो….? किससे मिलती… Read More

कविता : बिकता चाँद और सपने

तुम्हारे बाजार का चाँद तब तक ही बिकेगा। जब तक कि तुम हो।। कल के बाद वह चमकता चाँद भी धूमिल होगा । और अपनी पहचान ढूंढते लोगों में शामिल होगा ।। अस्तित्वहीन ना हो जाओ तो कहना । तुम्हारे… Read More

कविता : याचक जिसे समझा तुमने

बहुत खुश हो आज तुम अपनी उपलब्धियों पर अब तो मानलो कि किसी ने ये खुशी तुम्हारे लिए मांगी होगी इतना इतराते हो कुछ हासिल करते हो जब तुम क्या जानो किसने तुम्हारे लिए ये दुआ की होगी ऐसे चले… Read More

कविता : तेरे संग जीना मरना

जीना मरना तेरे संग है। तो क्यो और के बारे में सोचना। मिला है तुम से इतना प्यार, तो क्यो गम को गले लगाना। और हंसती खिल खिलाती, जिंदगी को क्यो रुलाना। अरे बहुत मिले होंगे तुम्हे प्यार करने वाले।… Read More

परमानंद को याद करना समय की जरूरत : जयनाथ मणि

देवरिया। वरिष्ठ आलोचक, कवि एवं संपादक, गोरखपुर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य डॉ. परमानंद श्रीवास्तव की पुण्यतिथि आज नागरी प्रचारिणी सभा के गांधी सभागार में मनाई गई। कार्यक्रम का आयोजन जनपद से प्रकाशित साहित्य एवं शोध की तिमाही पत्रिका… Read More

पुस्तक समीक्षा : अतृप्त आकांक्षाओं की अट्टालिका पर खड़ी ‘मध्यांतर’

हिंदी साहित्य जगत में एक समय के बाद कविताएँ लिखना लगभग खत्म सा हो गया था। या यों कहें कि कविताएँ तो लिखी जाती रहीं मगर स्तरीय लेखन का उनमें अभाव था। साहित्यकार अब न तो दरबारी कवि थे और… Read More

व्यंग्य : हैप्पी बर्थ डे

“बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का  जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला” ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के… Read More