तुम्हारे बाजार का चाँद तब तक ही बिकेगा।
जब तक कि तुम हो।।
कल के बाद वह चमकता चाँद भी धूमिल होगा ।
और अपनी पहचान ढूंढते लोगों में शामिल होगा ।।
अस्तित्वहीन ना हो जाओ तो कहना ।
तुम्हारे मानवताहीन चाँद और उसकी धूमिल रौशनी का यही होगा अलंकृत गहना ।।
लेकिन आज तुम सफल हो ,क्योंकि तुम राजा हो,
बेच लो जो बेचना है बेच लो जिसको बेचना है ,
खुशनुमा खरीदार जो हैं वह तुम जैसे समझदार ही तो हैं ,
पर क्या ईमानदार हैं?
पता नहीं,
शंका है ,
चिंता है जिस बात की वो रोजी और रोटी है?
हाँ ,
आस लगाए खरीदते चाँद के सपनों को वो मजबूर हैं।
लेकिन फिर भी आज तक वे दिहाड़ी के मजदूर हैं।।
ऐसा क्यों ?
तुम्हारे जैसी दुकानों का अस्तित्व कब तक होगा?
अनंत काल तक नहीं ना ,
अनंत काल तो सत्य , त्याग , दया ,धर्म में है
ये जानते हो तुम भी ,
लेकिन यह जानकर ना मानने वालों में हो तुम भी,
आशा की एक किरण को निहारते ,
उन पथराई आंखों को देखो ,
जिन्होंने तुम्हारे आश्वासनों पर आश्रित ,
आशाओं की लौ जला रखी है ,
पल – प्रतिपल ,
आशाओं या कोरी आशाओं में भी ,
साथ तुम्हारे जिन्हें निराशाओं का ही मिलता फल ,
देखो , देखो और सुनो ,
निराशाओं के इस कड़वे फल को चखा है तुमने भी ,
स्वाद कड़वा मरणान्तक कड़वा होता है ,
पर तुम भूल चुके हो ,
लेकिन हमको याद है और तुम भी ये याद रखना ,
इतिहास करता है अपनी पुनरावृति है ।
प्रकृति से संचालित दण्ड विधान से परे तुम भी कहाँ ,
दंडित होगे और तुम्हारा व्यापार भी बंद होगा ,
क्योंकि दंड विधान की होती बड़ी कड़ी आवृत्ति है ।।
उस आवृत्ति के प्रभाव में हम सब मुस्कुराएंगे ।
लेकिन तुम और तुम जैसे मानवीय भाव से हीन ,
जीवन रक्षा को चिल्लायेंगे।।
ना तुम हमें और प्रकृति को सुन पाओगे ।
और ना ही हम दोनों तुम्हें सुन पाएंगे ,
ना तुम हमें दृश्य होगे और ना हम तुम्हें दृश्य हो पाएंगे ।।
लेकिन हम सनातनी हैं ,
सच कहें तो तुम भी हमारे सर्वे भवन्तु सुखिन: के सपने हो ।
हमारी जीत और हार में भी हमारे साथ रहो ,
क्योंकि तुम भी हमारे अपने हो ।।
तुमने जो भी किया ,
हम देते उसकी माफी हैं ।
तुम राजा हो हम प्रजा हैं ,
हमको भी तुम अपना जानो हमको भी तुम अपना मानो ,
हमारे लिए तो इतना ही काफी है ।।