Actor Naseeruddin Shah

नसीरुद्दीन शाह हिंदी सिनेमा के सबसे वर्सेटाइल अभिनेता में शुमार हैं। उनके अभिनय में आप विविध रंग देख सकते हैं। उनकी खासियत है कि वे एकदम छोटे से रोल को भी इस शिद्दत से निभाते हैं कि आप उसको कई बरसों के बाद भी याद कर सकते हैं। मुझे उनकी इसी तरह की एक छोटा सी भूमिका याद आ रही है। #गोविंद निहलानी की फिल्म #अर्द्धसत्य की। इस फिल्म के हीरो तो #ओम पुरी थे। नसीर को एकदम छोटा सा रोल मिला था एक पूर्व पुलिसकर्मी का जो नौकरी से निकाल दिया गया था। वो शराब के नशे में घूमता रहता था। इस छोटे से रोल में भी नसीर अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। इसी तरह का छोटा सा किरदार शबाना आज़मी की लाजवाब फिल्म #मंडी में भी देख सकते हैं। इसमें जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली की भूमिका में #शबाना ने तो कमाल किया ही था लेकिन उसके नौकर बने नसीर ने ऐसा सहज अभिनय किया है कि वो हमेशा याद आता है। नसीर का उठना, बैठना, चलना और खड़े रहने तक की हर छोटी मोटी गतिविधियों एकदम घरेलू नौकरों से हूबहू मिलती हैं।

इस तरह का अभिनय नसीर इसलिए कर पाते हैं क्योंकि वे बहुत ही बारिकी से अपने आसपास के लोगों को आब्जर्व करते रहे हैं। नसीर अपनी आत्मकथा #एंड देन वन डे (#and then one day) में लिखते हैं कि तब एक ही चीज थी जिस पर मेरा पूरा ध्यान लगा रहता था कि मेरे आसपास के लोग क्या क्या कहते और करते हैं। कैसे रहते और जीते हैं।
मुझे वरदान जैसा कुछ मिला है तो वो है बोले गए शब्दों को सुनने की कला। सालों पहले बोले गए शब्द और उनकी ध्वनि मुझे याद रहती थी।

उप्र के बाराबंकी में हुआ जन्म
उत्तर प्रदेश के #बाराबंकी में 20 जुलाई 1950 को जन्मे नसीरूद्दीन ने प्रारंभिक शिक्षा अजमेर और नैनीताल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने स्नातक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की।

पांच सौ रुपये लेकर बंबई की ट्रेन पकड़ी
स्कूल के दिनों में नसीर नाटकों में शामिल होने लगे थे। इन्होंने प्रसिद्ध नाटककार #ज्योफ्री कैंडल के संसर्ग में रंगमंच और अभिनय की बारिकियां सीखीं। एक्टिंग का भूत ऐसा चढ़ा की घर से भागे। साइकिल, घड़ी और कुछ सामान बेचा और पांच सौ रुपये लेकर बंबई की ट्रेन पकड़ ली। वहां इनके साथ पढ़ने वाली लड़की के पिता फिल्में बनाते थे। इन्होंने सोचा था की आराम से हीरो बन जाएंगे। किसी तरह समझा बुझा कर इन्हें वापस घर लाया गया।

14 साल बड़ी पाकिस्तानी लड़की से शादी की
नसीर ने महज 19 साल की उम्र में खुद से 14साल बड़ी पाकिस्तानी लड़की #परवीन मुराद से निकाह किया था। उन दिनों नसीर #अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय(#AMU) में पढ़ते थे। परवीन वहां एमबीबीएस कर रही थीं। यह प्रेम विवाह तो था लेकिन थोड़ा थोपा हुआ भी। क्योंकि परवीन के पिता पाकिस्तान में थे और उसका वीजा खत्म हो गया था उसे वापस पाकिस्तान जाना पड़ता। इससे बचने के लिए उसका किसी भारतीय से शादी करना जरूरी था इसलिए नसीर का परवीन के साथ निकाह घरवालों को बताए बिना ही हुआ। विवाह के समय ही परवीन प्रेग्नेंट थी कुछ माह बाद इनकी बेटी #हीबा ने जन्म लिया। लेकिन एक बाप को बेटी के जन्म पर जो खुशी होती है वो नसीर को नहीं हुई। वो पिता की जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं थे। इसी दौरान नसीर का NSD में दाखिला हो गया था। वो परवीन को अलीगढ़ में छोड़ कर दिल्ली आ गए। इसके बाद परवीन और हीबा से इन्होंने किनारा कर लिया। परवीन बेटी को लेकर ईरान में जाकर बस गई बेटी जब 14 साल की हुई तब वो मिलने आई।

श्याम बेनेगल ने दिया ब्रेक
वर्ष 1971 में अभिनेता बनने का सपना लिये उन्होंने दिल्ली के #नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (#NSD) में दाखिला ले लिया। वर्ष 1975 में नसीरउद्दीन की मुलाकात जाने माने निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल से हुई । श्याम बेनेगल उन दिनों ‘निशांत’ बनाने की तैयारी में थे। श्याम बेनेगल को नसीरूद्दीन में एक उभरता हुआ अभिनेता दिखाई दिया और अपनी फिल्म में काम करने का अवसर दे दिया। उनके साथ स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसी अभिनेत्रियां थीं। #निशांत’ एक आर्ट फ़िल्म थी। यह फ़िल्म कमाई के हिसाब से तो पीछे रही पर फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह के अभिनय की सबने सराहना की।

किसानों के दो-दो रुपये के सहयोग से बनी थी मंथन
वर्ष 1976 नसीरूद्दीन के सिने कैरियर में अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी #भूमिका और #मंथन जैसी सफल फिल्म प्रदर्शित हुईं। दुग्ध क्रांति पर बनी फिल्म ‘मंथन’ में नसीरूद्दीन के अभिनय ने नये रंग दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म के निर्माण के लिये गुजरात के लगभग पांच लाख किसानों ने अपनी प्रति दिन की मिलने वाली मजदूरी में से दो-दो रुपये फिल्म निर्माताओं को दिये थे। बाद में जब यह फिल्म प्रदर्शित हुयी तो यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई।

इन कला फिल्मों में दिखाई कलाकारी
नसीर ने #आक्रोश, #‘स्पर्श’, #‘मिर्च मसाला’, ‘#अलबर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों आता है’, ‘मंडी’, ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’, ‘अर्द्ध सत्य’, ‘कथा’ आदि कई आर्ट फ़िल्मों में एक से बढ़कर एक अभिनय किया है।

व्यवसायिक फिल्मों में भी जगह बनाई
आर्ट फ़िल्मों के साथ वह व्यापारिक फ़िल्मों में भी सक्रिय रहे। #‘मासूम’, #‘कर्मा’, #‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘#गुलामी’, ‘#त्रिदेव’, ‘विश्वात्मा’, #‘मोहरा’, सरफ़रोश जैसी व्यापारिक फ़िल्में कर उन्होंने साबित कर दिया कि वह सिर्फ आर्ट ही नहीं कॉमर्शियल फ़िल्में भी कर सकते हैं। नसीरूद्दीन शाह के फ़िल्मी सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने मसाला हिन्दी फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई हिचक नहीं दिखायी। वक्त के साथ नसीरूद्दीन शाह ने फ़िल्मों के चयन में पुन: सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। बाद में वे कम मगर, अच्छी फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे। ए वेडनस डे में भी नसीर ने बढ़िया अभिनय किया है।

नसीरूद्दीन शाह ने एक फ़िल्म का निर्देशन भी किया है। हाल ही में वह “इश्किया”, डेढ़ इश्किया और बेगम जान और “राजनीति” में अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुके हैं।
#nasirudin shah

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