कहानी : साँप

शाम के सात बज रहे थे। पटना के ईकलॉजिकल पार्क में अविनाश अपनी गर्लफ़्रेंड अनामिका की गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था और अनामिका उसके घुंघराले बालों में अपनी उँगलियाँ फेर रही थी। तभी अविनाश के मोबाइल फोन का… Read More

लघुकथा : सफलता

सन् दो हज़ार अठारह में प्रशासनिक सेवा हेतु बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के अंतिम चरण का परिणाम आया था। मनीषा को सफलता प्राप्त हुई थी लेकिन मानव कुछ अंकों से असफल हो गया था। मनीषा और मानव… Read More

लघुकथा : दिल वाला टैटू

क्षमा मिश्रा नाम था उसका। लेकिन मोहल्ले के सारे लड़के उसे छमिया कह कर पुकारते थे। महज़ अठारह बरस की उम्र में मोहल्ले में हुई अठाईस झगड़ों का कारण बन चुकी थी वो। उसका कोई भी आशिक़ चार महीने से… Read More

लघुकथा : मज़दूर

कामिनी देवी जब कभी भी अपने राइस मिल पर जाती थीं, माधो से ज़रूर मिलती थीं। माधो उनकी राइस मिल में कोई बड़ा कर्मचारी नहीं, बल्कि एक मज़दूर था। राइस मिल में काम करने वाले सभी लोगों का मानना था… Read More

लघु कथा : बेइंतहा प्यार

डीएम ऑफिस से आने के बाद से ही दीपमाला बहुत दुखी और परेशान थी। वह आईने के सामने खड़ी होकर अपने ढलते यौवन और मुरझाए सौंदर्य को देखकर बेतहाशा रोए जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वह आईने… Read More

लोरी : नन्हे राजकुमार

मेरे नन्हे से राजकुमार करता हूं मैं तुमसे प्यार जब भी देखूं मैं तुझको  ऐसा लगता है मुझको  था मैं अब तक बेचारा और क़िस्मत का मारा आने से तेरे हो गया है दूर जीवन का हर अंधियार मेरे नन्हे… Read More

गीत : बनारस की गली में

बनारस की गली में  दिखी एक लड़की  देखते ही सीने में आग एक भड़की कमर की लचक से  मुड़ती थी गंगा  दिखती थी भोली सी पहन के लहंगा मिलेगी वो फिर से दाईं आंख फड़की बनारस की गली में… पुजारी… Read More

कविता : जय श्री राम

त्याग का पर्याय  प्रतीक शौर्य का  पुरुषों में उत्तम संहर्ता क्रौर्य का परहित प्रियता  भ्राताओं में ज्येष्ठ  कर्तव्य परायण नृप सर्वश्रेष्ठ शरणागत वत्सल  हैं आश्रयदाता  दशरथ नंदन भाग्य विधाता भजे मुख मेरा  तेरा ही नाम  जय सिया राम जय श्री… Read More

कविता : पलायन का जन्म

हमने गरीब बन कर जन्म नहीं लिया था  हां, अमीरी हमें विरासत में नहीं मिली थी  हमारी क्षमताओं को परखने से पूर्व ही हमें गरीब घोषित कर दिया गया किंतु फिर भी हमने इसे स्वीकार नहीं किया कुदाल उठाया, धरती… Read More

Nature

कविता : प्रकृति

विध्वंसक धुंध से आच्छादित दिख रहा सृष्टि सर्वत्र किंतु होता नहीं मानव सचेत कभी प्रहार से पूर्वत्र सदियों तक रहकर मौन प्रकृति सहती अत्याचार करके क्षमा अपकर्मों को मानुष से करती प्यार आती जब भी पराकाष्ठा पर मनुज का अभिमान… Read More