भारतीय सिनेमा और संगीत की दुनिया की सुर साम्राज्ञी, स्वर कोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर जी आज हमारे बीच नहीं रहीं। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्होंने अंतिम साँसे ली। बीते कुछ दिनों से उनका अस्पताल में कोरोना का इलाज चल रहा था। कुछ दिनों पहले स्वास्थ्य में सुधार भी आया था। किंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था। ऊपरवाले की दुनिया में शायद संगीत की कमी होगी। जिसने अपनी कमी को पूरा करने के लिए हमारे संगीत की दुनिया का स्वर्णिम अध्याय को समाप्त कर उसे अनंत यात्रा पर भेज दिया। संगीत की दुनिया लता दी के बिना हम जैसे सिने प्रेमियों के लिए अधूरा है। इनके जैसा फ़नकार हमें न भूतो न भविष्यते अब कभी देखने को मिलेगा। ‘ए मेरे वतन के लोगों’ ये वो गीत है जिसने पूरे देश को राष्ट्रभक्ति की भावना से सराबोर कर दिया। इसको जब भी सुना जाता है तो आँखें नम होनी स्वाभाविक है। ये एक संयोग की हीं बात है कि आज कवि प्रदीप जी का जन्मदिवस भी है। जिन्होंने इस गीत को लिखा था। साथ हीं कल सरस्वती पूजन का पावन पर्व भी था। कहा जाता है कि माँ शारदे साक्षात उनके कंठ में विराजमान थीं। और आज माँ शारदे की गोद में वो सदा सदा के लिए सो गईं। ऐसा लगा जैसे साक्षात माँ सरस्वती उन्हें लेने आई हों। आज पूरे देश की आँखें बेहद नम है। उनका हर एक गीत भारतीय सिनेमा में कोहिनूर हीरे की भांति है। कहना गलत न होगा कि भारतीय सिनेमा उनके गाने के द्वारा हीं समृद्ध हुआ है। जिसे देश ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान मिली। आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन अपने गीतों के जरिये युगों-युगों तक याद की जाएँगी। यूँ कहें कि संगीत का जब भी जिक्र होगा तो हम उन्हें भुला न पाएँगे। क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवान हर उम्र के लिए वो उनकी हमउम्र थीं। लगभग 36 भाषाओं में 30,000 से ज्यादा गानों को अपनी आवाज़ देने वाली, ऐसी महान गायिका लता मंगेशकर जी (28 सितंबर 1929-06 फरवरी 2022) को विनम्र श्रद्धांजलि।
जब हम न होंगे तब हमारी
खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते
अश्कों से भीगी चाँदनी में
इक सदा सी सुनोगे चलते चलते
वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं हम
तुमसे मिलेंगे, बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में…
रहें ना रहें हम, महका करेंगे…
ज़िन्दगी प्यार का गीत है
इसे हर दिल को गाना पड़ेगा,
ज़िन्दगी ग़म का सागर भी है
हँस के उस पार जाना पड़ेगा…