kah do koi unse

ग़ज़ल : कह दो कोई उनसे कि

कह दो कोई उनसे कि, बाग़ में आना-जाना छोड़ दें कह दो कोई उनसे कि, फूलों से अदा चुराना छोड़ दें खुशबू बनके दफ़न है सीने में मेरी सासें जिनकी कहदो कोई उनसे कि, बालों में गज़रा लगाना छोड़ दें… Read More

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कविता : आभार

आभार प्रकट करते हैं हम उस महामानव को जिसने हमारे प्रज्ञा चक्षु खोले कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन का वह पुत्र सर्वसंग परित्यागी गौतम नाम धारी महाकारूणिक था, जिसने जीने का सही ढंग मानव समाज को सिखाया । हम चलेंगे उस… Read More

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कविता : सीख

हम देखते हैं, सूखे हुए पेड़ों को जर्जरित पौधों को कठिन काल की हर दौर में एक पीड़ा है उनकी जिंदगी ये चीखते नहीं, चिल्लाते नहीं है व्यथा का मुंह कभी खोलते ही नहीं कुछ मांगते नहीं गिड़गिड़ाते दिखते नहीं… Read More

कविता : कोरोना के आतंक से परेशान है

आज पूरा देश कोरोना के आतंक से परेशान है कोई कहता शैतान तो कोई कहता हैवान है चार बार नहाते है दिन में, सौबार चमकाते हाथ हैं शान से कहती है मेरी बीवी, देखो घर में कितना काम है सारे… Read More

कविता : पलायन

पलायन, महज घर छोड़ कर जाना ही नहीं होता पलायन सपनों का बिखर जाना और हृदय का भर जाना होता है गहरे घावों से सर पर पोटली लिए  गोद में बच्चे लिए बुजुर्गों को पीठ पर लादे दहकती गर्म कंक्रीट… Read More