kah do koi unse

कह दो कोई उनसे कि, बाग़ में आना-जाना छोड़ दें
कह दो कोई उनसे कि, फूलों से अदा चुराना छोड़ दें

खुशबू बनके दफ़न है सीने में मेरी सासें जिनकी
कहदो कोई उनसे कि, बालों में गज़रा लगाना छोड़ दें

आज भी पुरानी गलियों में, कोई आहट महसूस होती है
कह दो कोई उनसे कि, अपने कंधे से आँचल लहराना छोड़ दें

सहर में ओस की बूंदो से हम भींग गये मन भर आज
कह दो कोई उनसे कि, गीले गेसुओं को सुखाना छोड़ दें

सुन लेते हैं दबे होठों की सदा कुछ लोग नागवार
कह दो कोई उनसे कि, मेरा नाम पुकारना छोड़ दें

मुद्दत्तों बाद बना है मेरे दिल में मुकाम किसी का
कह दो कोई उनसे कि, यूँ तलाश-ए-सुकून भटकना छोड़ दें

एक अक्ष बसा है राम का जिसके नशीली आँखों में
कह दो कोई उनसे कि, लोगो से यूँ नज़रें मिलाना छोड़ दें

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