अच्छे दिन वो जाने कब तक आयेंगे
तबतलक हम खाक़ में मिल जायेंगे।।
रोशनी पहुंचेगी जब तक इल्म की
ये अन्धेरे और भी बढ़ जायेंगे।।
वक्त का सूरज भी कितना सुस्त है
सालोंं उगने में उसे लग जायेंगें।।
सभ्यता ने चोट सदियों तक सहा
इतनी जल्दी घाव क्या भर पाएंगे।।
ये बिमारी, भूख मंहगाई, गरीबी
देश को जाने कहाँ पहुंचाएंगे।।
जो हमारे काम का है ही नहीं
पीठ पर ढो कर कहाँ ले जायेंगे।।