श्वेत चंद्रमा
रजत रश्मियां,
रूप यौवन से
अपनी छटा बिखेर रहा।।
ओस की बूंदें बरस रही
रूप यौवन से लदे,
खिल रहे खेत सारे।।
सुंदर रूप हुआ धरा का
फूलो की खुशबू से महका
आंचल वसुंधरा का।।
सतरंगी पुष्प – लताओं ने
किया श्रृंगार
खेत खलिहानों में
लहलहाती फसलें
ओस की बूंदें
बिखराती मुस्कान।।
कही फूलो ने
वादिया सजाई
तो कही हरियाली ने
चादर बिछाई
शरद ऋतु ने दी अगवाई।।
कच्चे सूत के
पक्के धागों में
खुशियों की मीठी
उजास भरते सारे।।
हरी – हरी हंसी की
कुंजी बनाकर
सबद – साखी गुनगुना रहे
सूती लच्छियो से सहेजे
जा रहे प्यार के सूत
तन की ढाल बनकर
प्यार में गुथा रहे रिश्ते।।