माँ कौशल्या की कोख से
नृप दशरथ सुत जन्में राम।
नवमी तिथि चैत्र मास को
अयोध्या का था रनिवास।।
निहाल हुए अयोध्यावासी,
बजने लगी चहुंओर बधाई।
जन जन के अहोभाग्य हो,
मानुज तन ले प्रगटे रघुराई।।
माता पिता की करते सेवा नित,
न्योछावर थे खुशियों की खातिर।
छोड़ दिये सुख राज महल के,
माँ कैकई के दो वचन खातिर।।
पिता की आज्ञा मान गये वन ,
विश्व बंधुत्व का भाव भर कर।
जनकसुता का किया वरण,
शिव धनुष भंग स्वयंवर में कर।।
,
चौदह वर्षों के वनवास काल में,
राक्षसों, दैत्यों का संहार किया।
शबरी के जूठे बेरों को खाकर,
, नवधा भक्ति दे उद्धार किया.
पुत्र, भाई, दोस्त की बने मिसाल ,
सबकी चिंता को मन में लाये।
अपनी चिंता का ध्यान न कर,
रावणवध से आतंक मिटाए।।
पर ज्ञानी रावण की विद्वता को,
अंतरमन से स्वीकार किये।
मर्यादा की मूरत प्रभु श्री राम,
मर्यादा हित सारे काज किये।।
,
सकल जहां में जिनका यश फैला,
वो जन जन के आधार बने।
करें बखान सुर, नर, मुनि जन
संकट सबके उनने थे हरे।।
रामनाम की महिमा है भारी,
जपने से मुक्ति सब हैं पाते ।
सबका ध्यान रखते थे सदा वे,
मर्यादा पुरुषोत्तम थे कहलाते।।
भेदभाव नहीं करते थे वे,
ऐसे प्रभु श्रीराम हमारे हैं
राम नाम में बस कर प्रभु,
बने सबके तारण हारे हैं।।