nari

नवरात्रि में दुर्गा के रूप में पूजी जाने वाली शक्ति रूपा स्त्री आज अधिकांश रूप में बेबस और लाचार नजर आती है। नारी का रूप बदला है, किन्तु नारी के प्रति संकीर्ण अवधारणाएं आज भी नहीं बदली है। आज भी उसे गलत नजर से देखा जाता है। घर की बेटी, लक्ष्मी, जब गुस्सा हो जाए तो वह दुर्गा का रूप ले लेती है, “जो पाप का नाश” कर सकती है।

एक लड़की अपनी मां, पापा, भाई, बहन आदि सभी के लिए वरदान होती है। नारी कभी मां के रूप में तो कभी बेटी के रूप में भगवान का दिया हुआ वरदान है, जो बिना परिश्रम लिए बड़ी आत्मीयता के साथ सभी परिवार जनों की सेवा करती है और जमीन से आसमान तक हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है। जब नारी कदम बढ़ाती है तो वह अपने साथ कई इतिहास लिख जाती है। एक समाज में अपना अलग परचम लहराती है। आज की नारी सदैव पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है और उनसे अधिक ज़िम्मेदारी का निर्वाहन करती है, वहीं आज भी हमारा समाज उन्हें गलत नज़रों से देखता है, उन्हें लगता कहीं नारी पुरुषों से आगे न निकल जाए। आज भी उसे सम्भोग की वस्तु समझा जाता है। महिला को उसकी जिंदगी जीने दे दीजिए। उसे अपनी राय के जाल में मत फासिए वह नया सुरक्षित समाज खड़ा कर देगी।

वर्तमान में हर फील्ड में लाड़कियां अपनी मेहनत के बल पर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है। इनकी सफलताओं का सम्मान किया जाना चाहिए। कोविड़ और इससे पहले भी देखा गया था कि महिला और पुरुष के कामों में जमी – आसमा के बराबर का फर्क होता है। क्यों होता है कि घर के कामों को सिर्फ महिला के साथ जोड़ दिया जाता है। हैरत की बात है कि अकेले नायक को कार्यस्थल पर खुद को सिद्ध करना होता है। बावजूद इसके वे समान वेतन की हकदार नहीं।

“जिस प्रकार एक पक्षी के लिए केवल एक पंख के सहारे उड़ान सम्भव नहीं है, वैसे ही किसी राष्ट्र की प्रगति केवल शिक्षित पुरुषों के सहारे ही सम्भव नहीं है।”

आज ऐसी स्थिति है नौ दिनों तक देवी के रूप में पूजा की जाती है और उन्हीं मासूम बच्चियों के साथ गलत काम करते हुए लज्जा नहीं आती।

” कैद न करो
अपनी बेटियों को,
इनके हाथों में दे दो
अब तलवार।।

बना दो
दुर्गा, काली
कर सके अपनी
सुरक्षा और सम्मान ॥

फिर न कोई दुशासन
जिंदा हो पाए
यहां रक्त बीज की
तरह बैठा है
हर शक्स के मन में
शैतान…..॥

सीता सी पवित्र नारी को
बुरी नजर से देखने वाला
रावण आज भी जिंदा है ॥

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