अदिति…
आओ लंच करें… मिली ने टिफिन खोलते हुए कहा। “नो डियर, तुम कर लो, मुझे भूख नहीं है।” अदिति ने विंडो से बाहर देखते हुए कहा। “व्हाट डू यू मीन, भूख नहीं है।” क्या बात है दिवाकर, अभी भी रूठा हुआ है? ओ कमऑन…!
डोंटवरी…एक-दो दिन में सब ठीक हो जाएगा।” मिली ने समझाते हुए कहा।
“इट्स ऑल ओवर मिली। अब कुछ ठीक नहीं हो सकता। ही लेफ्ट अस फॉरेवर। डू यू नो? सिमी ने पापा कहा, तो बेचारी मासूम को डाँट दिया। चीखकर बोला, डोंट कॉल मी पापा, आई एम नॉट योर पापा।” कहते-कहते अदिति की आँखें छलक उठी। “ओह! ये तो वास्तव में बुरी ख़बर है। एक काम करो, कुछ दिन के लिए तुम अपने डैड के घर चली जाओ। मे बी, यू फील बेटर।”
मिली ने समझाया।
मैं वहाँ भी नहीं जा सकती मिली…! डैड से लड़ झगड़कर ही तो मैं दिवाकर के साथ रहने गई थी। लेकिन उसने मुझे ही छोड़ दिया, मिली…! नाउ… व्हाट विल आई डू?”
अदिति ने पेंसिल की नोक को डेस्क पर घुमाते हुए कहा ।
“ह्म्म्म्म! सिचुएशन इज क्रिटिकल!”
मिली ने सोचते हुए कहा।
मुझे अपनी चिंता नहीं है, मैं सिमी के बारे में सोच रही हूँ। दिवाकर, सिमी का पिता है भी, और नहीं भी। अनफार्चुनेटली, मैं कानून की मदद भी नहीं ले सकती हूँ। क्योंकि, बारह साल तक हम अपनी सहमति और मर्ज़ी से लिव- इन-रिलेशनशिप में रहे। कानून ये भी हक़ देता है कि हम अपनी मर्जी से अपने पार्टनर को कभी भी छोड़ सकते हैं। ये बात मुझे बाद में पता चली। और मैं सच कहती हूँ मिली! इन बारह सालों में मुझे हमेशा यही डर सताता रहा कि कहीं दिवाकर मुझे छोड़ न दे…और देख लो, उसने आज मुझे छोड़ दिया, जैसे मैं उसके लिए कोई चीज़ थी कि यूज किया, एंड थ्रो करके चलता बना…अब मैं सिमी को कैसे कहूँ, कि जिसे वो अपना डैडी कहती है, वो आज से उसका डैडी नहीं रहा।” अदिति सुबकती रही। लंच ओवर हुआ और मिली अपनी सीट पर चली गई।