यह कहानी एक डॉ. के निष्काम कर्म, सेवा, करुणा के दायित्व बोध का संदेश देती हुई डॉ. और मरीज के मध्य कर्तव्य और रिश्तों की व्यख्या कराती है। कहानी दो पात्रों के इर्द गिर्द घूमती है पहला पात्र है डॉ नमन और दूसरा पात्र है नियति जो विद्यालय से लौटते समय बुरी तरह घायल हो जाती है और अचेत अवस्था में चिकित्सा हेतु अस्पताल लाई जाती है। जहां ड्यूटी पर डॉ. नमन उसे चिकित्सा हेतु भर्ती करता है नियति का ब्लड ग्रुप ए बी निगेटिव है जो ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं है और वहां उपलब्ध किसी व्यक्ति का रक्त समूह ए बी निगेटिव नहीं है। डॉ. नमन का ब्लड ए बी निगेटिव है अतः वह नियति को अपना ब्लड देता है । नियति को होश आता है उसे पता चलता है कि नियति को डॉ. नमन ने ब्लड दिया है। डॉ. नमन नियति के मम्मी पापा को फ़ोन करके नियति के दुर्घटना की खबर देता है। नियति के घबराये मम्मी पाप को सांत्वना देता है। नियति के पैर में कई फ्रेकचर है जिसका ऑपरेशन अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक करते हैं और नमन स्वयं भी मौजूद रहता है। नियती की सगाई हो चुकी होती है और उसे भय है कि यदि वह पूर्णतया ठीक नहीं हुई तो सगाई टूट जायेगी डॉ. नमन आस्वस्त करता है कि वह पूर्णतया ठीक हो जायेगी और उसका विवाह भी धूम धाम से होगा। डॉ. नमन मेडिकल में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम का स्टूडेंट रहता है। ऑपरेशन रूम से सफल आपरेशन के बाद नियति के मम्मी पापा के शब्द थे वाह…! आपके रूप में हमने भगवान् को देखा है यह हमारी बेटी का सौभाग्य था कि दुर्घटना के बाद ड्यूटी डॉक्टर के रूप में आप मिले मेडिकल प्रोफेसन में डॉक्टर कि भूमिका राष्ट्र समाज में भगवान् की तरह मानवीय मूल्यों को शिखर प्रतिस्थापित करने में कहानी सफल है। दो माह तक अस्पताल में चिकित्सा के दौरान नमन व्यक्तिगत स्तर पर नियति की विशेष देख रेख करता है। निश्चय ही नमन के निःस्वार्थ सेवा भाव से नियति की नियति बदती है और वह डॉ. नमन को अपने जीवन में नियति कि नियत मानती है… …
तुम्हारा जैसे हर पल सूर्योदय।
हर सुबह सुहानी हर शाम मस्तानी।
हर रात चाँदनी हर ऋतू बसंती।
और हर संकट बेमानी साथ तुम्हारा
जैसे कविता में आधे तुम आधी मैं।
तुम्हारे गीत मेरा संगीत।
तुम्हारी हंसी मेरी मुस्कान।
तुम्हारी खुशी मेरा खजाना।
तुम्हारी उलझने मेरी मुश्किले।
तुम्हारी खामोशी मेरी परेशानी।
और तुम्हारा चेहरा मेरी निशानी।
साथ तुम्हारा जैसे आसमान छूने की अनुभूति।
नित नई बनती क़ोई कहानी।
कहानी में भी कोई कविता प्यारी।
तुम असंभव को संभव।
अमंगल को मंगल।
उदासी को बना देते खुशहाली।
तुम्हारी हंसी कितनी जानी जानी।
नियति की अभिव्यक्ति डॉ. नमन के प्रति उन संवेदनाओ का मूल्य या मूल्यांकन है, जिसकी अनुभूति दो महीने अस्पताल में चिकित्सा के दौरान प्रत्यक्ष अनुभव किया था। नियति कि सगाई टूट जाती है। मगर उसे सगाई टूटने की कोई ग्लानि नहीं होती है, उसे अपने हुई दुर्घटना के बाद डॉ. नमन के भगीरथ प्रयास से प्राप्त नव जीवन पर अभिमान होता है। कहानी के माध्यम से कहानीकार ने मेडीकल प्रोफेसन में मेडिकल कॉलेज स्तर से यानि प्रारम्भ से ही चिकित्सकों में मानवीय संवेदनाओ के दर्द में ईश्वरीय दुआ और दवा के भाग्य भगवन के रूप में विकसित करने के केंद्र के रूप में प्रमाणिक परिभाषा देने में सफल है।