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बड़े साहब का ट्रान्सफर हो गया था। तीस तारीख को उन्हे रिलीव होना था। साहब बड़े उदार दिल के थे। लोकप्रिय भी। इसलिये ऑफिस की  तरफ से उन्हें भव्य विदाई पार्टी देने का निर्णय लिया गया था। एक अच्छे कार्यक्रम के आयोजन की तैयारी होने की चर्चा थी। कुछ लोगों का मत था कि विदाई के साथ उन्हें कोई कीमती तोहफा भी दिया जाए। सब मिल कर चंदा इकठ्ठा कर लेते हैं और उपहार खरीद लें।

एक बुजुर्ग खूंसट बाबू ने उनकी बात काटते हुए कहा, “उपहार देने का कोई फायदा नहीं है। जब साहब जा ही रहे हैं तो उपहार के लिए दिया गया चंदा कैसे वसूल होगा। गुलदस्ते से काम चल जाएगा। बात को समझो, डूबते सूरज को पूजा नहीं जाता। ज्यादा खर्च करने की जरुरत नहीं और हाँ, अब ये पता लगाओ कि आने वाले साहब का मिजाज कैसा है।”

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