आज 3 जनवरी को भारत की पहली महिला शिक्षिका, महान समाज सुधारिका, मराठी की पहली कवयित्री, भारतीय नारीवादी आंदोलन की सूत्रधार, स्त्रियों को मुक्ति की राह दिखाने वाली महामहिला, राष्ट्रमाता पूजनीया किसानिन सावित्रीबाईफुले की जयंती है। सावित्रीबाई फुले की जयंती को ‘स्त्री शिक्षा दिवस’ और ‘नारी मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। हम भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र संघ से माँग करते हैं कि किसानिन सावित्रीबाई फुले के जनमदिन को भारत और विश्व में ‘स्त्री शिक्षा दिवस और ‘नारी मुक्ति दिवस’ के रूप में सरकारी स्तर से मनाया जाए और सरकारी अवकाश घोषित किया जाए।
किसानिन सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी सन 1831 को महाराष्ट्र के छोटे से गॉंव नायगॉंव जिला पालघर के किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता गाँव के पाटिल किसान खन्दोजी नैवेसे और माता किसानिन लक्ष्मीबाई थीं। सावित्रीबाई फुले का विवाह नौ साल की उम्र में सन 1840 में तेरह साल के महान समाज सुधारक, किसान विचारक, राष्ट्रपिता महात्मा जोतिबा फुले के साथ हुआ था। वे बालविवाह का विरोध तो नहीं कर सकी, लेकिन अपने क्रांतिकारी पति जोतिबा फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए कई युगांतकारी कदम उठाए।
सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों, स्त्रियों और समाज के हाशिए के लोगों को शिक्षा दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई। वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं। उन्होनें जोतिबा फुले के साथ मिलकर सन 1848 में भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला और वो उसकी प्रिंसिपल बनीं। वो भारत के पहले किसान स्कूल की संस्थापक भी थीं। उन्होंने लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले। जिसमें से पहला और 18वां स्कूल पुणे में खोला था।
महात्मा जोतिबा फुले को महाराष्ट्र और भारत के सामाज सुधार आंदोलन में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। उन्हें स्त्रियों, किसान और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। किसान ज्योतिराव, जो बाद में महात्मा ज्योतिबा फुले के नाम से जाने गए। वे सावित्रीबाई फुले के पति, संरक्षक, गुरू और समर्थक थे। सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह जीया, जिसका उद्देश्य था – विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, स्त्रियों की मुक्ति और स्त्रियों को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं, उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता है।
सावित्रीबाई फुले की ये पंक्तियाँ स्त्रियों को शिक्षा हेतु प्रेरित करतीं हैं और पितृसत्ता को स्त्री शिक्षा का विरोधी ठहराती हैं –
“आखिर कब तक तुम अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को सहन करोगी। देश बदल रहा है। इस बदलाव में हमें भी बदलना होगा। शिक्षा का द्वार जो पितृसत्तात्मक विचार ने बंद किया है, उसे खोलना होगा। ”
सावित्रीबाई फुले जिन बदलाओकारी विचारों की थीं, उसकी झलक उनकी कविताओं में भी मिलती है। वो स्त्री शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं, जो लड़कियों के घर में काम करने, चौका – बर्तन करने की अपेक्षा उनकी पढ़ाई – लिखाई को बेहद जरूरी मानती थीं। इन पंक्तियों को देखिए –
“चौका बर्तन से बहुत जरूरी है पढ़ाई
क्या तुम्हें मेरी बात समझ में आई ?”
सावित्रीबाई फुले ने स्त्री-पुरूष समानता के लिए भी आवाज बुलन्द की। वो कहती हैं कि –
“स्त्रियाँ सिर्फ रसोई और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनीं हैं, वे पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती हैं।”
जब शिक्षिका सावित्रीबाई फुले कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं, तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। आज से 175 साल पहले लड़कियों के लिए जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था, तब ऐसा होता था।
सावित्रीबाई फुले पूरे भारत देश कीं महानायिका हैं। उन्होंने हर जाति और धर्म के लिए जीवनभर काम किया। उनके जीवन को भारत में महिलाओं के अधिकारों का प्रकाश स्तंभ माना जाता है और उन्हें भारतीय नारीवादी आंदोलन की जननी के रूप में जाना जाता है। सन 1864 में बेसहारा स्त्रियों के लिए उन्होंने एक आश्रय गृह की स्थापना की और सभी वर्गों, जातियों की समानता के लिए संघर्ष करने वाले धर्मसुधारक संस्थान सत्यशोधक समाज (1873 में स्थापित) में अहम भूमिका निभाई। सन 1897 में पुणे में प्लेग महामारी फैली, तब वे लोगों की सेवा करती रहीं। ऐसे में वे भी प्लेग की चपेट में आग गईं और 10 मार्च सन 1897 को पुणे में उनका निधन हो गया।
सावित्रीबाई फुले ने स्त्रियों के उत्थान के लिए शिक्षा, लेखन और सामाजिक सुधार के माध्यम से जो योगदान दिया वो विश्व – इतिहास में उल्लेखनीय है। हम (किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज झाँसी’) सावित्रीबाई फुले को भारत की प्रथम स्त्रीवादी लेखिका, स्त्री विमर्शकार मानते हैं – ” जन्म से किसानिन, पेशे से शिक्षिका और समाज सुधारिका, स्त्रियों के साथ – साथ वचिंत वर्गों किसान और दलितों के लिए जीवनभर संघर्ष करने वाली सशक्त नारी, अपनी कलम से स्त्री – अधिकारों को धार देने वाली लेखिका सावित्रीबाई फुले सच्चे अर्थों में भारतीय नारीवाद या स्त्री विमर्श की सूत्रधार थीं। स्त्रियों के उत्थान हेतु उनके संघर्षों को विश्व इतिहास सदा याद रखेगा ”
31 दिसंबर सन 2023 को भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी ने सावित्रीबाई फुले को याद करते हुए मन की बात में कहा – “सावित्रीबाई फुले जी का नाम आते ही सबसे पहले शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में उनका योगदान हमारे सामने आता है। वे हमेशा महिलाओं और वंचितों की शिक्षा के लिए जोरदार तरीके से आवाज उठाती रहीं। वे अपने समय से बहुत आगे थीं और उन गलत प्रथाओं के विरोध में हमेशा मुखर रहीं। शिक्षा से समाज के सशक्तिकरण पर उनका गहरा विश्वास था। महात्मा फुले के साथ मिलकर उन्होंने बेटियों के लिए कई स्कूल शुरू किए। उनकी कविताएँ लोगों में जागरुकता बढ़ाने और आत्मविश्वास भरने वाली होती थीं। लोगों से हमेशा उनका यह आग्रह रहा कि वे जरूरत में एक-दूसरे की मदद करें और प्रकृति के साथ भी समरसता से रहें। वे कितनी दयालु थीं, इसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता। जब महाराष्ट्र में अकाल पड़ा तो सावित्रीबाई और महात्मा फुले ने जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए। सामाजिक न्याय का ऐसा उदाहरण विरले ही देखने को मिलता है। जब वहाँ प्लेग का भय व्याप्त था तो उन्होंने खुद को लोगों की सेवा में झोंक दिया। इस दौरान वे खुद इस बीमारी की चपेट में आ गईं। मानवता को समर्पित उनका जीवन आज भी हम सभी को प्रेरित कर रहा है।”
राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले को जयंती पर हम सत – सत नमन करते हैं और उनके मिशन के अधूरे कामों को पूरा करने का संकल्प लेते हैं।