Purnima ki raat

आज तुम्हे एक रात की बात बताता हूँ जो थी तो पूर्णिमा की रात लेकिन मेरे जीवन की वो सबसे आंधेरी रात थी। ये बातें मैं सिर्फ तुमसे कह रहा हूँ क्योंकि तुम्हारे सिवा कोई भी मेरे इतने करीब नही आ सका है जिसे मैं ये सारी बातें बता सकूँ और मैं जानता हूँ कि तुम मेरे साथ थी, हो और हमेशा रहोगी।

कॉलेज खत्म होने के तीन साल बाद भी मैं उससे नही मिल पाया था जिसका ज़िक्र करने के लिए मैंने तुम्हे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाया था, लेकिन एक दिन तुम्हारी ही वज़ह से मैंने उसे एक कॉफी शॉप में देखा, दरहसल मैं पिछले दिन तुम्हे जिस टेबल पर भूल आया था वो उसी टेबल पर बैठी थी, हमने काफी देर तक बातें की और मुझे उसकी बातों से लगा कि वो अब तक अकेली है, बड़े शहरों में ऐसा होना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन तो नही।

मैंने उसे दुबारा देखा उस जगह पर जहाँ हम कॉलेज के दिनों में आखिरी बार पिकनिक मनाने आए थे और उसे वो जगह इतनी पसन्द आई थी कि उसने उत्सुकता में वहीं घर बसाने का फैसला कर लिया था, जब मैं उसके करीब पहुंचा तो देखा कि इस बार वो अकेली नही थी उसके साथ कोई और भी था जो मुझे काफी जाना पहचाना सा लग रहा था, जब मैंने और करीब से देखा तो पाया कि वो मेरे बचपन के घनिष्ठ मित्र के साथ हाथों में हाथ डाले खड़ी थी, मैं बिना एक भी कदम आगे बढ़ाये वापस लौट गया। रात को जब मैंने टी. वी. पर न्यूज़ चैनल देखा तो उसमे दो लोगों के मौत की खबर आ रही थी जिन्होंने नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली थी, जब मैंने गौर से देखा तो ये वहीं जगह थी जहाँ से मैं सुबह लौट आया था, मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, साँसे फूलने लगी और जब मैंने टी. वी. पर मरने वालों की तस्वीर देखी तो ये वहीं दो लोग थे जिनसे सुबह मैं मिले बिना वापस आ गया था, मैं जहाँ खड़ा था वहीं धड़ाम से बैठ गया और अपने दोनो हाथों को सिर पर रखकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।

अगले दिन मुझे पता चला कि दोनों के हाथों के बीच से प्लास्टिक की थैली में पैक एक पर्ची मिली है जिसमे शायद मेरा नाम लिखा है, शाम तक मुझे वो पर्ची प्राप्त हुई और जब मैंने उसे पढ़ा तो उसमे लिखा था “हम तुम्हारे क्षमाप्रार्थी है, हो सके तो हमे माफ कर देना..!”

वो रात पूर्णिमा की थी, आसमान में चाँद चमक रहा था लेकिन वो रात मेरे जीवन की सबसे आंधेरी रात थी।

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