nari(1)

अनुपमा अरबिंद कि दूसरी पत्नी जिसे अरबिंद की पहली पत्नी के पुत्र विनम्र से कोई आत्मीय लगाव नहीं है उसका विश्वास है कि
विनम्र के रगों में उसके पति का तो लहू प्रवाहित हो रहा है मगर साथ ही साथ उसकी स्वर्गिय सौत का लहू भी है जिससे कि विनम्र को
उसे अपना पुत्र स्वीकार नहीं कर पाती उसको विश्वाश है उसकी कोख का ही पुत्र उसका हो सकता है उसकी आकांक्षाओं और भविष्य
कि आशा उम्मीद हो सकता है ।अरबिंद और उसके संबाद में नारी मन कि शंका व्यथा के तौर पर प्रस्फुटित होती है जो निश्चय नारी
मन कि संसय संवेदना की और इंगित करता है साथ ही साथ दूसरी नारी के अस्तित्व कि वस्तिक्ताओं पर भरोषा नहीं करती है नारी
की यही खासियत है कि उसको स्वयं कि सत्ता के समक्ष दूसरी नारी गौड़ नजर आती है ।अनुपमा का भी चरित्र नारी के इसी प्रबल पक्ष
का प्रतिनिधित्व करती अपनी स्वर्गिय सौत सुलक्षणा कि विरासत विनम्र को नकार देती है।और दो पुत्रियों मेधा नेहा के होते पुत्र कि
आकांक्षा और प्राप्ति में जीवन संसार के रिश्तों के सुखो कि कल्पना करती है उसे वह अपने आचरण से प्रमाणित भी कराती है
शिखर को जन्म देने के बाद कदाचित वह अपने स्वयं के कोख कि पुत्रियों मेधा और नेहा के प्रति उतनी कर्तव्य परायण और उत्तरदायी
नहीं रह जाती जितना माँ को अपने सभी संतानों के लिए होना चाहिये था वह सिर्फ खुद के उद्धेश्यों भविष्य के लिये स्वयं को शिखर
पर केंद्रित कर अपने जीवन का सर्वोच्च कर्तव्य पालन करती है उसके कर्तव्य पालन का माध्यम स्रोत उसका पति उसके पति कि तीन
संताने विनम्र ,मेधा ,नेहा उसके लिये महत्वहीन लगते है।अरबिंद इस कहानी का ऐसा किरदार है जो जीवन में दो नाव पर सवार या
यूँ कहें दो राहे पर खड़ा खुद को असहाय असमंजस कि स्तिति में महसूस करता है ।पहली पत्नी के व्यवहार उसके संग गुजारे लम्हे
सुलक्षणा का गंभीर व्यक्तित्व मर्यादित आचरण एक आदर्श जीवन संगिनी का साथ उसे नारी कि उत्कृष्ठ स्वरुप कि सार्थकता का याद है
तो अनुपमा कि जिद्द निष्ठुरता अहंकार नारी के कठोरतम स्वरुप का साथ कहीं न कहीं उसे बेवस विवस सुलक्षणा के उस वचन के
निर्भहन के कारण होना पड़ रहा था।सुलक्षणा ने अरबिंद से कहा था की वह उसके मृत्यु के  पश्चात दूसरी शादी कर ले।अनुपमा लम्हा
लम्हा विनम्र को अपने ही घर में परायेपन का एहसास कराती रहती है ।अरबिंद को लगता है कि विनम्र की प्रतिभा बिखर जायेगी तब
वह सुलक्षणा द्वारा विनम्र के जन्म के बाद उसके होने कि खुशियों के एहसास में लिखे गए थे को सुलक्षणा कि डायरी से निकाल कर
देता है माँ कि कविगाओं से प्रेरित होकर विनम्र ने पहली कविता उसके मनोभाव पर सुलक्षणा के मनोदशा कि सत्यता बया करते है
जिसके प्रभाव में विनम्र कि भावनाये भी एक समर्थ साहित्यकार कि तरह माँ को अपने साहित्य में समेट लेता है—::अपनी मृत्यु से
पहले माँ तुमने कहा था बीटुआ मेरी मौत पर रोना नहीं    ये शब्द सुनकर उसी पल मेरी आँखों से बह चली थी अविरल अश्रु धरा मेरा
ह्रदय और मैं नम आँखों से बार बार याद करता हूँ तुम्हे और ये शब्द लगते है गुजने मेरे कानों में बिटुआ मेरी मौत पर मत रोना::

शिखरतम कि चाह का नाम शिखर था  माँ बनाने वाली थी और उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अनुपमा ने शिखर रखा
।शिकर के आलावा उसकी जिंदगी में महत्व्पूर्ण कुछ भी नहीं था ।अरबिंद ने विनम्र के जन्म दिन पर उसे सुलक्षणा कि डायरी भेट की
जो विनम्र के लिये सबसे बड़ा तौफा था ।समय बिताता है और विनम्र प्रबक्ता हिंदी का हो जाता है शिखर भी  अब शिक्षा के योग्य हो
जाता है उसे सबसे महंगे स्कूल में दाखिला  दिलवाया जाता है वही उसकी सगी बहनों को साधारण स्कूल।में पढ़ना एक नारी महिला
द्वारा बेटी बेटों में भेद कि आज भी सामाजिक परम्परा को लेखक द्वारा समाज पर व्यंग रूप में बाखूबी दर्शाया गया है।अचानक
अनुपमा हरेमिक फीवर से ग्रसित हो जाती है अस्पताल में भर्ती होती है जीवन मृत्यु के बिच संघर्ष कराती है उस समय विनम्र कि
बाखूबी सेवा करता है विनम्र कि सेवा और चिकित्सको के प्रयास से अनुपमा स्वस्थ होकर घर लौटती है तब उसे अहसास होता है कि
रिश्तों कि बुनियाद भावनाओं और उसके सम्मान के आधार पर होती है एका एक उसका वर्ताव विनम्र के साथ बदल जाता है और वह
विनम्र को लगभग शिखर के सामान ही स्नेह करने लगती है ।अब अरबिंद अनुपम विनम्र नेहा मेधा शिखर का खुशहाल परिवार सब
मिलकर शिखर को शिखरतं पहुचाने के लिये अपना सहयोग करते है शिखर आई आई टी से इंजीनियर होकर विदेश में अच्छे पॅकेज पर
चला जाता है वही बसने कि ख्वाहिस में अनिवासी भारतीय लड़की विवाहोपरांत अनुपमा को दूरभाष द्वारा सूचित करता अनुपमा
को शिखर को शिखरतम् खुद के पैरों कि जमीन गवांते गवातें रह गयी उसने विनम्र से कहा तुम मेरे खरे बेटे हो सौतेला तो शिखर
है।इस कहानी में जन्मार्जित और कर्माजीत जन्म और समाज सामाजिक रिश्तों कि सच्चाई कि शानदार प्रस्तुति कहानी का सशक्त पक्ष
और बेटी बेटों में फर्क माँ के ही द्वारा जो स्वयं एक नारी है नारी कि संवेदना है के माध्यम से बेटियों कि शिक्षा संरक्षण का महत्व्पूर्ण
सन्देश देती है।।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *