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आज के दो महत्व्पूर्ण व्यवसाय कि जीवनशैली और उसके परिणाम को भारतीय पृष्ठ भूमि में तुलनात्मक अभिव्यक्ति जो समाज के
नौजवान के लिये ख़ासा विस्मयकारी सन्देश देती है दो विपरीत पृष्ट भूमि के व्यक्तियों  कि मित्रता जीवन के प्रारम्भ से अंत तक समाज
के सभी वर्ग को सशक्त सन्देश देती है।
शुभम और शिवम् के इद्र गिर्द घूमती यह कहानी कई प्रश्नचिन्ह कड़ी करती है तो मित्रता के संबंधों को नए आयाम ऊंचाई प्रधान करती
है ।यहाँ आजके हालात में दो विपरीत पृष्ट भूमि के नए सामाजिक परिवेश को परिभाषित करने कि जी जान से कोशिश की है जो आज
संभ्रांत और अति साधारण के मध्य अंतर को पाटने का प्रयास लेखक के प्रयास को प्रसंशनीय बनती है ।शिवम् भोला भाला अति
साधारण परिवार से सम्बंधित है उसके पिता अतिसाधारण आय और समाज से सम्बंधित है ।शिवम् को विद्यालय में प्रवेश उसकी
उपलब्धियों पर मिला है वह विद्यालय का सीधा साधा किनारे बैठने वाले का कुछ निठल्ले छात्र खिल्ली मजाक उड़ाते।शुभम शहर के
मशहूर संस्कार विला से सम्बंधित है शिवम से शुभम की मुलाक़ात भी शुभम के अंतर मन के आवाज से होती है पैदल जाते शिवम् को
अपने बाइक पर बैठने का आमन्त्रण देना संस्कार विला के संस्कार कि धरोहर शुभम शिवम् कि पृष्टभूमि का क़ोई प्रभाव न पड़ना
बाल्यकाल कि मित्रता नहीं बल्कि मानवीय संवेदनओ के शिखरतं रिश्तों का अनुकरणीय है।
समय के साथ शुभम शिवम् समाज के दो बिभिन्न पृष्टिभूमि के व्यक्ति व्यक्तित्वों में दोस्ती के साथ साथ शिक्षा आगे बढ़ती है शिवम्
जहाँ ट्यूशन से पढ़ाकर उससे प्राप्त आय से अपनी शिक्षा जरूरतों को पूरी करता है तो शिवम् के पिता उसके मेडिकल में चयन होने पर
दस हज़ार का पारितोषिक देने कि घोषणा करते है।शिवम् और शुभम दोनों ही मेडिकल परवेश परीक्षा में प्रथम द्वितीय रहते है ।शुभम
मेडिकल में प्रवेश लेता है मगर शिवम् के पास मेडिकल में प्रवेश लेंने के लिये पैसा नहीं होता है तब शुभम शिवम् को मेडिकल में प्रवेश
लेने हेतु समझाता है मगर शिवम् राजी नहीं होता है और कहता है —::शुभम तुम्हे मेरी योग्यता पर भरोसा  है न तो सुनो मुझे शार्ट
कट अपनाने दो मै कालेज में प्रवेश न लेकर स्व पाठी के तौर पर बी ए करूँगा और आई ए एस बनकर दिखाऊंगा तीन साल में मेरी
सफलता एक मात्र लक्ष्य होगा::शिवम् का चरित्र आज के परिवेश में आर्थिक रूप से कमजोर युवा वर्ग को उनकी योग्यता दक्षता के
समक्ष चुनौती प्रस्तुत करता ललकारता है कि मनुष्य कमजोर या पिछड़ा या गरीब नहीं हो सकता है कमजोर होती है उसकी
मानसिकता कमजोर होती है उसकी सोच कमजोर होती है उसकी दृढ़ इक्च्छाशक्ति ।शुभम मेडिकल कालेज में प्रवेश लेता है और
शिवम स्व पाठी बन बी ए करता है और आई ए एस कि कोचिंग अपने मित्र शुभम को दिये वचन को निभाने के लिये करता है फिर

आई ए एस में चयनित हो जाता है ।शुभम जब तक पांच वर्ष मेडिकल की पढाई पूरी कर् इंटर्नशिप करता है तब तक शिवम् जिला
अधोकारी हो जाता है । शुभम मेडिकल कि पढाई पूर्णकर प्राथमिक स्वस्थ केंद्र पर चिकित्सक नियुक्त हो जन सेवा में जुड़ जाता है।
जीवन चक्र निरंतर चलता  रहता है शुभम जयपुर के कस्बे  में प्राथमिक स्वस्थ केंद्र पर चिकित्सक के तौर पर जनता कि सेवा करता है
और शिवम् स्वस्थ विभाग का शीर्ष अधिकारी राज्य् का बनकर जयपुर आता है आते ही वह अपने स्कूल के और बचपन के मित्र से
पूछता है कि क्या वह उसी प्राथमिक स्वस्थ केंद्र से सेवा निबृत्त होना चाहता है जहाँ से उसने सेवा प्रारम्भ कि थी साथ ही साथ
स्वास्थ विभाग में  सुधार हेतु सलाह मांगता है ।शुभम अपने अनुभव शिवम् को बताता है कि रोगी जब उसके पास आता है तो कैसे
अपने रोग और उपचार हेतु स्वयं ही सलाह देता है यदि ग्लूकोज का बोतल न चढ़ाया जाय तो रोगी को लगता ही नहीं कि चिकित्सक
द्वारा उसकी समुचित चिकित्सा की गयी ।शुभम शिवम् को स्वस्थ विभाग द्वारा निशुल्क जनता के स्वस्थ जांच कि सलाह फीड बैंक के
तौर पर देता है मगर लागू नहीं हो पाता जिसके सम्बन्ध में शिवम् का स्पष्ट मत है कि::तुमने मुझे निशुल्क स्वस्थ जाँच योजना का
फीड बैक दिया था  उस पर कोईं सुधारात्मक कदम सम्भव नहीं था क्योंकि मेरा मानना है कि योजना कितनी भी अच्छी क्यों न हो
काही न कही उसका दुष्परिणाम देखने को मिलता है।यदपि इस योजना में दुष्परिणाम रोगियों और चिकितकों को भोगने पड रहे थे
सरकार कि  राजस्व हानि भी हो रही थी::। कहानी में शासकीय स्वस्थ सेवा और जनता के मध्य एक सार्थक पहल संवाद कि और
इंगित करती सार्थक पहल कि और प्रेरित करती है।कहानी के मुख्य दो पात्र शुभम और शिवम् अपने जीवन कि सफलतम संध्या कि
और धीरे धीरे कदम बढ़ाते है शुभम जोधपुर में चैरिटेबल अस्पताल खोल लेता है तो शिवम् आई ए एस के उच्चपद से सेवा निबृत्त हो
चूका होता है दोनो कि मुलाकात होने पर दोनों एक दूसरे आपने अपने जीवन कि यात्रा जो जलजोग चौराहे और संस्कार विला के
साथ हुई थी के विषय में एक दूजे को अवगत कराते है ।शिवम् अपने बैंक अधिकारी पुत्र और प्रोफ़ेसर पत्नी के आचरण और व्यवहार से
दुखी है तो आई ए एस कि बड़े पद कद के इर्द गिर्द घूमती भीड़ का आदि सेवा निबृत्ति के बाद एकाकी महत्वहीन साधारण नागरिक
होने कि घुटन से स्वयं को समाज कि मुख्य धरा से तिरस्कृत समझता है शायद उसे स्वार्थी दुनियां कि समझ जीवन कि वास्तविकता से
रुबरु करवाती है।शुभम एक चिकित्सक होने के कारण समाज का महत्व्पूर्ण हिस्सा बना रहता है जिससे उसकी उपयोगिता समाज के
हर वर्ग में बानी रहति है ।यहाँ व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता न होकर व्यक्ति व्यक्तिव के कर्तव्य दायित्व बोध को लेखक ने ज्यादा महत्व्पूर्ण
माना है लेखक ने इस कहानी के द्वारा सेवा धर्म को मानव मानवता के लिये श्रेष्ठ स्वीकार करने का बखूबी संदेस देने कि कोशिश कि है
इस कहानी का सशक्त पक्ष है मानवीय संवेदना का मित्रवत रिश्ता साथ ही साथ शिवम् के बेटे बहु का आचरण आधुनिक समाज में
संतानो का अपने माँ बाप के प्रति बदलते आजके आधुनिक समाज कि विकृति को उजागर करता सामाजिक मूल्यों में गिरावट का
सन्देश देता सजग करता है।

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