निश्चित रूप से सयुक्त परिवारों में जिन बच्चों का जन्म होता है और लालन पालन होता है उन्हें जीवन समाज रिश्तों कि कीमत भाव भावना का अनुभुव अनुभूति से साक्षात्कार होता है सयुक्त का तात्पर्य ही होता है एक दूसरे से मन मस्तिष्क भावो संकल्पों से जुड़ा होना ।सयुक्त परिवार कि क़ोई समाज एक शक्ति के समन्वयक संतुलन का समाज होता है जिसकी हर कड़ी मूल्यवान और महत्व्पूर्ण होती है ।तीन भाईयों के सयुक्त परिवार में लड़की पैदा होती है सभी ख़ुशी से झूम जाते है बड़े प्यार से उसका नाम नलिनी सभी लोग रखते है सभी उसका ख्याल रखते है नन्ही सी नलिनी कि हर गतिविधि सयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के कौतुहल और चर्चा का विषय रहती है नन्ही जान नलिनी को हर तरफ से प्यार दुलार मिलाता है और वह धीरे धीरे बढती हुई बोलने चलने लगाती है ।भोली नलिनी अपनी भोली निश्चल भाषा में दादी से सवाल जबाब जीवन कि सच्चाई का सामना कि सच्चाई है नलिनी कुसाघ्र और वाचाल है जो सबको भाति है
नलिनी स्कूल जाने लगती है उसे जीवन के कुछ चीजों का मतलब भी समझ में आने लगता है जैसे जन्म दिन चौथे जन्म दिन पर वह अपने स्कूल में टाफी बटाती है । मम्मी कि सिख नलिनी के मन में उत्तर जाती है और वह खूब पड़ने लिखने का अपने बाल मन से संकल्प लेकर डिस्कोवरी चैनल टीवी देखने लगती है —जंगली भैसों के समूह कि एक भैस को प्रसव से बच्चा होता है वह रुक कर अपने बच्चे के पास खड़ी रहती है जब तक कि सूर्यास्त नहीं होने लगता समूह के साथी भैस आगे निकल चुके थे जबकि समूह की एक भैस अपने बच्चे के पास तब तक थी जब तक उसे विश्वास नहीं हो गया कि समूह से अलग रहकर वह स्वयम जिन्दा नहीं रह पायेगी तो बच्चे को क्या बचाएगी वह अपने नवजात को अकेला छोड़ समूह से जा मिलाती है और शेरों का एक समूह नवजात भैस के बच्चे को अपना नेवला बना लेता है
इस घटना का नलिनी के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है नलिनी का भोला मन लचर भैस के बच्चे का लाचारगी और शेर कि क्रूरता के मध्य कई सवाल खड़े करता है जिसका उत्तर वह अपने पिता से अपने सवालों के जरिये चाहती है ।अंततः उसके पिता बताते है कि इंसान से सभी प्राणी डरते है इंसान शेर को बंधक बना लेता है।नलिनी का दादा जी के साथ वाक् और संवाद किसी को भी बचपन में लौटने को विबस कर देती है शाकाहारी मंशाहरी पर नलिनी के सवाल निश्चय ही बाल मन के प्रकृति के आकर्षण का प्रतिबिम्ब है शेर के लिये नलिनी के मन में घृणा मांस कि दूकान देख शाकाहार मांसाहार पर उसके प्रश्न वास्तव में बाल स्वरुप जिसमे ईश्वर स्वयं बसता हैं का कही न कही कोमल।भावों का प्रकृति कि सत्यता कि सार्थकता का सन्देश है।रात सोने से पूर्व माँ से नलिनी का सवाल –::मम्मी क्या जंगल में भैस को अपने बच्चे को अकेले छोड़ कर जाना चाहिये था::कोमल मन कि मार्मिकता को उजागर करता है।स्चूल में टीचर द्वारा इंसानो को जानवरों से श्रेष्ठ बताये जाने और इंसान जानवर नशा नहीं करता इंसान नशा करता है स्चूल से घर आते ही नलिनी बड़े ताऊ जी के गुटखा खाने कि आदत से टकरा गयी मगर ताऊ ने गुटखा अपने अहं का प्रश्न बना लिया ।नलिनी ने अपने ताऊ जी को पत्र लिखा ::अगर मैं आपकी सचमुच चहेती हूँ तो आपको अपनी बेटी कि बात तो माननी ही होंगी अब मान जाओ मैं आपसे कभी कुछ नहीं मांगूगी ::नलिनी के दादा अचानक हार्ड अटैक से चल बसे दादा के बाद दादी ने खाट पकड़ लिया फिर कभी नहीं उठी।दादा दादी के मरने के बाद घर का माहौल बदल गया सयुक्त परिवार कि स्तिति बदल चुकी थी अब सब अब दिलों और घरो का बटवारा हो चूका था मगर नलिनी अब भी सयुक्त परिवार कि तरह सबकि लाडिली थी वह सबके यहाँ पूर्ववत जाती रहती अपनी कड़ी मेहनत और लगन से आर जे एस कि परीक्षा उत्तीर्ण कर वह न्यायाधीश हो गयी अब वह पुश्तैनी मकान से अपने रिश्तों से बिछड़ जीवन के नए सफ़र की और बढ़ रही थीं। कहानीकर ने भारतीय सयुक्त परिवार और उसकी संस्कृति और उसके बिखण्डंन कि भूमिका का कारण आर्थिक आधार की असमानता मगर सबमे समानता को बखूबी वर्णित किया है ।नलिनी सयुक्त परिवार कि लड़ली और विखंडित परिवार कि दुलारी को सयुक्त परिवार और बिखण्डित दोनों परिस्थितियों के प्रतिनिधि पात्र के रूप में सार्थकता से प्रस्तुत किया है ।नलिनी प्रकृति पर्यावरण संरक्षण और शाकाहार नशा उन्मूलन का ब्रांड अम्बेसडर कहानी के मध्यम से प्रस्तुत करने में कहानीकार पूर्णतः सफल है।