kalam(1)

साहित्य जीवन मूल्यों कि साध्य साधना है या नहीं ,साहित्य का सामाजिक गति काल से कोई सरोकार है कि नहीं
डस्टबिन उसी वास्तविकता कि पृष्टभूमि कि व्याख्या और सच्चाई है ।सजल द्वारा प्रारम्भ में सीड़ी पत्रिका में अपनी
कहानियो को प्रेषित करना और संपादक रमाकांत जी द्वारा उन कहानियों को डस्टबिन यानि कूड़ेदान में डाल देना
निश्चित रूप से किसी भी साहित्यकार को आहत कर सकता है सजल के आत्म सम्मान को ठेस पहुचना स्वाभाविकता कि
सत्यता प्रतीत होता है ।विवाह के उपरान्त नयन जैसा पति सरला को मिलना साहित्य की धरा धरातल मिलने जैसा है
क्योकि नयन इस कहानी का ऐसा पात्र है जिससे जुड़ने के उपरान्त साहित्य सरोवर सजल को गति मिलती है नयन के
कहने पर स्थानीय महाविद्यालय में हिंदी के सहायक प्रोफेसर पद हेतु आवेदन करती है और चयनित हो जाती है जहाँ उसे
पवन कार्यालय में सहायक के तौर पर मिलता है जो सरला के के साहित्यिक संकल्प का माध्यम  मार्ग के रूप में सेतु का
कार्य करता है ।पवन ही सजल को सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान के लिये बधाई देने के लिये जब सजल के कक्ष में प्रवेश करने
वाला होता है सजल मानो अपने मूल्यों के मार्ग कि प्रतीक्षा कर रही हो जिसे बड़े बेबाक तरीके से समारोह में भावातिरेक
से व्यक्त करती है ।सजल का उद्बोधन सकारात्मकता स्वीकारोक्ति के सर्व सिद्धांत कि अभिव्यक्ति है ::साथियो आज जो मैंने
कहा उससे एक बात निकालकर आई कि नकारात्म टिप्पणियॉ से बिचलित हुये बिना हर नकारात्मक बात को डस्टबिन में
दफन कर देना चाहिये मैं यहाँ बैठे छात्र छात्राओं का आवाहन कराती हूँ आप कोइ भी काम करें  और लोग आपको लक्ष्य से
भ्रमित करने का प्रयास करें तब भी अपनी सकारात्म ऊर्जा को नष्ट न होने दे:: सजल कि अभिव्यक्ति वास्तव में आज के
युवा वर्ग के लिये जीवन का मूल मन्त्र और सिद्धान्त है जो प्रसंगिग और सशक्त राष्ट्र समाज के निर्माण कि बुनियाद भी।
सरला कि समारोह में अभिव्यक्ति उसके अपने जीवन कि सच्चाई थी जिसे उसने अपनी साहित्यिक यात्रा के प्रारम्भ में ही
लगभग अपमान भाव या यूँ कहे सीड़ी पत्रिका के संपादक रमाकांत के रूखे व्यवहार  के कड़वे घुट नकारात्मकता कि
व्यवहारिकता का बोध कराती सजल कि सफलता कि सकारात्मकता के मध्य जीवन यात्रा कि कशमकश पुनः प्रकाशित
तब होती है जब समारोह में रमाकांत जी से सजल का सामना होता है और सजल अतीत के पन्ने बलट रमाकांत से सवाल
करती है जबाब से उसके प्रश्न औए भी उलझ जाते है –रमाकांत का कथन ::मैं पहचान नहीं सका क्योकि आपने कहानियों

के साथ अपना फ़ोटो नहीं भेजा था :: निश्चय ही साहित्य में भेद भाव कि राजनितिक परम्परा का बोध कराती है और
निस्पक्ष उत्कृष्ठ साहित्य कि परम्परा को नकारती है। बस में वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश जी से सजल की मुलाक़ात वरिष्ठ
सहित्यकार के अंतर्मन कि वेदना का उदगार कि वास्तविकता ही है सीढ़ी पत्रिका के संपादक रमाकांत के विषय में गिरीश
जी कि टिप्पड़ी बहुत सी ऐसी पत्रिकाये है जो राजनीति से प्रभावित रहती है निष्पक्ष वरिष्ठ साहित्य कि व्यथा को दर्शाते
है।सजल जो इस सम्पूर्ण कहानी में साहित्य का प्रतिनिधित्व करती प्रमुख पत्र है नयन साहित्यिक आकांक्षाओं कि भौतिक
शक्ति का केंद्र बिंदु तो पवन पात्र का जैसा नाम वैसा उद्धेश्य पवन साहित्य कि धारा सजल को गति और दिशा प्रदान
करने का अहम अस्तित्व है सजल कि आकांक्षा कि दृष्टि दृष्टिकोण कि भूमिका साहित्य को चरमोत्कर्ष पर प्रतिस्थापित
करने में है जो प्रसानिक और महत्व्पूर्ण है नयन द्वारा साहित्य भवन का निर्माण और सजल और पवन के अथक।प्रयास से
इंद्रधनुष पत्रिका का प्रकाशन आज साहित्य कि प्रसंगिगता और जरूरतों के समन्वय कि सार्थकता का बोध है ।साहित्यिक
सपनो कि सार्थकता का पात्र नयन साहित्य कि धरा सजल के सपनो के पूर्ण करने में एक शसक्त माध्यम है जिसके बिना
सहिफ्य कि धरा का प्रभा प्रवाह सम्भव नहीं है।साहित्य भवन का निर्माण और इंद्रधनुष पत्रिका का प्रकाशन साहित्य कि
यात्रा अनुभव निष्पक्षता की धरातल पर सरभौमिक।प्रयास का परिणाम है जो आज साहित्य कि आवश्यकता है और
साहित्यिक अविष्कार कि जरुरत भी है।
इंद्रधनुष पत्रिका के लोकार्पण समारोह में उस रमाकांत कि अभिव्यक्ति जिसने सजल को प्रारंभिक दिनों में नकार दिया
था इस कहानी का मुख्य आकर्षण है–::साथियों सच कहूँ इस तिमंजिले भवन में जिसका नाम हिंदी साहित्य भवन है में
आज आकर किसी भव्य मंदिर में आने जैसा सुकून मिल रहा है साहित्य के मंदिर में आकर अपनी बात कह कर रोमांचित
हूँ।सचमुच यह एक अनोखा एहसास है।इस मंदिर के देवी के रूप में एक ऐसी सख्शियत जिनके रक्त में हिंदी के पक्षदर
वायरस है ।मैं सोचता हूँ कि हिंदी भाषा और साहित्य के लिये लाभदायक वायरस पुरे भारवासियों को संक्रमित कर दे तो
हिंदी को वह गौरवशाली स्थान मिल जाय जो अब तक नहीं मिला:: पुनः सीड़ी पत्रिका के संपादक के रूप में पश्चाताप कि
अभिव्यक्ति साहित्य कि शानदार परंपरा और संस्कृति का सहकार का सत्कार इस कहानी का मार्मिक और सशक्त पक्ष है।
साहित्य समाज कि पहचान राष्ट्र के अस्मत कि धरोहर होती है कहानी का श्रेष्ठतम भाव पक्ष वर्तमान में भविष्य को
सारगर्भित सार्थक सन्देश देता है।

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