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प्रवासी साहित्यकारों में सुधा ओम ढींगरा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। सुधा ओम ढींगरा का साहित्य दो संस्कृतियों पर आधारित होने के कारण उनके साहित्य की मूल संवेदना प्रवासी न होकर ‘अन्त: सांस्कृतिक’ पर आधारित हैं। भारतीय और विदेशी ज़मीन की संस्कृति को आपस में जोड़ने का श्रेय सबसे पहले सुधा ओम ढींगरा को ही जाता हैं। साहित्य के प्रत्येक विधा पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई हैं। जिसमें उपन्यास, कहानी संग्रह, काव्य संग्रह इत्यादि है। सुधा ओम ढींगरा की प्रकाशित रचनाओं में पांच कहानी संग्रह-कमरा न०103, कौन सी ज़मीन अपनी, वसूली, दस प्रतिनिधि कहानियां, तथा सच कुछ और भी था आदि। चार काव्य संग्रह-सरकती परछाइयां, धूप से रूठी चांदनी, तलाश पहचान की, सफ़र यादों का आदि। उपन्यास नक्काशीदार कैबिनेट आदि के अतरिक्त संपादन का कार्य भी किया हैं। सुधा ओम ढींगरा का साहित्य भारत और अमेरिका की समस्याओं को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता हैं। इनके साहित्य की एक विशेषता यह भी हैं कि वह कल्पना पर आधारित न होकर यथार्थ पर आधारित होता है। सुधा ओम ढींगरा ने अपने साहित्य को इतनी सहजता से प्रस्तुत किया हैं की पाठकों को उनकी रचना पढ़ते समय ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे वे स्वयं भी उसी का ही अंग हो। सुधा ओम ढींगरा ने अपने साहित्य में नारी समस्याओं को तो रखा ही हैं, साथ में पुरुष के समस्याओं को भी वह अपने साहित्य में स्थान देती हैं। इस प्रकार महिला लेखिका होने के बावजूद भी वह स्त्री और पुरुष में भेदभाव नहीं करती बल्कि निष्पक्ष होकर अपने साहित्य की रचना करती हैं।
सुधा ओम ढींगरा द्वारा रचित उपन्यास ‘ नक्काशीदार केबिनेट’ में मुख्य नारी पात्रों सोनल और सम्पदा के माध्यम से भारतीय परम्परा और पाश्चात्य परम्परा को चित्रित किया गया हैं। सुधा ओम ढींगरा ने अपने इस उपन्यास में आपसी रंजिशें, संपत्ति के लालच में अपनों को ही मौत के घाट उतार देने की भावना, विवाह के नाम पर विदेश ले जाकर मानव तस्करी जैसे जघन्य समस्याओं को अपने उपन्यास में वर्णित किया है। स्त्री को शुरू से लेकर अंत तक संघर्ष करते ही दिखाया गया है। उपन्यास की नायिका सोनल का पूरा जीवन समस्याओं से घिरा पड़ा हैं,उसे न तो अपने देश पंजाब में खुशहाल जीवन मिलता है और न ही शादी के बाद विदेश जाने पर। समस्याएं कभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ती फिर भी वह इन समस्याओं के आगे घुटने टेकने के बजाय, उसका डटकर सामना करती है और इसमें वह सफल भी होती हैं। कहावत भी है भगवान भी उसी की सहायता करते है जो समस्याओं से भागने की बजाय उसका डटकर सामना करे। सोनल का जीवन रंजिशों के चलते इतना कठिन होने के बाद भी वह कभी टूटी नहीं उसने जीवन से हमेशा से प्यार ही किया हैं। इस संदर्भ में सम्पदा कहती हैं कि “कइयों का जीवन कठिन, असाध्य परिस्थितियों से गुजरता है और उहें चोटें भी लगती हैं, पर वे उन स्थितियों में भी खुशियाँ ढूंढ लेते हैं। वह ऐसी ही थी। जीने की चाह से भरपूर। जीवन ने उससे खुशियाँ छीनीं। पर वह खुश रही….. उसने जीवन से अपने हिस्से की खुशियाँ वापिस लीं।”1
सोनल इसी आपसी रंजिशों के चलते अपनी बहन मीनल, पम्मी(सुक्खी का भाई), बीजी, बाऊ जी, पिता जी सबको खो देती है। मीनल को मरने में उसके बुआ, चाचा, चाची, चाची के भतीजें सब के सब मिले होते हैं। जो सामने तो सात्वना देने का दिखावा करते है और पीठ पीछे उसे और उसकी माँ दोनों को मार कर सम्पत्ति हड़पना चाहते है। उसके अपने नाना, मामा तक की नज़र उनकी सम्पत्ति पर है, उन्होंने अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करने की निति को अपनाते हुएँ सोनल की माँ को उसके इतने विरुद्ध कर दिया माँ उसके पास तक बैठना पसंद नहीं करते थे।”वह पूरी तरह से नाना जी के निर्णयों पर निर्भर हो गई थीं। मैं अगर उन्हें सच्चाई भी दिखाना चाहती तो वह मुझ से नाराज हो जातीं; जिस माँ ने हमेशा मुझे समझा और भरपूर प्यार और साथ दिया। वह मेरी बात सुनते ही एकदम भड़क उठतीं।”2 माँ और बेटी के बीच दरार डाल अब सभी सोनल के विवाह के पीछे पड़ गए थे। उन्होंने सोनल के लिए लड़का भी ढूंढ लिया था, जो उनके इशारों पर नाचे। माँ को सुक्खी के बारे में सब पता होने के बावजूद भी वह विवाह के लिए तैयार हो गयी थी। सोनल जब माँ से इस बारे में पूछती है तब माँ उससे कहती हैं कि “दिल को सँभाल ले मेरी बच्ची, मास्टर जी का एक बेटा जा चुका है। दूसरे की ज़िन्दगी ख़तरे में डालने का तुझे कोई हक़ नहीं। बन्दूक की गोलियाँ किसी की सगी नहीं होती। तुमसे अधिक इसे कौन समझ सकता है? मन को मर ले और आगे के होने वाले विनाश को रोक। जान है तो जहान है।”3
सोनल को मज़बूरी में शादी के लिए हाँ करना पड़ा क्योंकि वह माँ और सुक्खी को नहीं खोना चाहती थी। “मैंने अनमने मन से डॉ० बलदेव के साथ शादी के लिए ‘हाँ’ कर दी। घर में मौतें हुई थीं, इसलिए कोर्ट में शादी हुई। उनके परिवार से सिर्फ उनके भाई-भाभी आए थे; बाकी सब लोग अमेरिका में थे ….शादी के बाद भी डॉ० बलदेव मेरे लिए अजनबी ही रहे।”4 सोनल के भी हर लड़की की तरह कुछ सपने थे कि ससुराल जाने पर उसे भी नया परिवार मिलेगा और वह सब उसे खूब सारा प्यार देंगे। पर हुआ बिल्कुल इसके विपरीत परिवार वालों के हाव-भाव से बिल्कुल नहीं लग रहा था कि जैसा वह दिखा रहे है अपने को सच में ऐसा ही है। सोनल थकने का बहाना कर सोने के लिए चली जाती है ताकि वह जान सके की आखिर सच क्या है। वह चुपके से बलदेव और उसकी माँ की बातें सुन लेती हैं-” कहा था लड़की बहुत स्मार्ट है। पुलसिये यार ने बहुत पक्की करके भेजी है। पहले इसका विश्वाश जीतो। उसके नाना को वादा किया है, कागज़ों पर साइन करवा कर दूँगा और बदले में उसके घर में पड़े हीरे मेरे होंगें ….फिर हम सब इक्कठे उसे नोच खाएँगे। मन भरने पर दे देंगे किसी और को।”5
अपने देश और विदेश में इतना धोखा खाने के बाद सोनल को डनीस और रॉबर्ट के रूप में बुजुर्ग दम्पत्ति मिलते है, जो सोनल को एक रात अपने घर रुकने की इजाजत दे देते हैं। एक तरफ तो विदेश में अजनबी सोनल के इस दुःख, दर्द में उसका साथ दे रहे थे। दूसरी तरफ सोनल के नाना, मामा के भड़काने पर गाँव वाले सोनल के बारे में तरह-तरह के बातें करने लगे थे। जिससे परेशान होकर सोनल की माँ और सुक्खी के माता-पिता ने गाँव छोड़ दिया था। सोनल सोचने लगती है कि उसके बाऊ जी सही कहते थे-“अक्सर लोग कानों के कच्चे और सच से आँखें मूंदने वाले स्वभाव के होते हैं। समूह में हों तो लोगों का व्यवहार ही बदल जाता है।”6 सोनल के इस पूरे संघर्ष में सुक्खी ने हर दम उसका साथ दिया। सुक्खी ने सोनल को कभी यह नहीं लगने दिया की वह इस लड़ाई में अकेले खड़ी हैं। हमेशा उसकी ढाल बनकर उसके साथ खड़ा रहा। सुक्खी, सम्पदा को बताता हैं कि”दीदी, सोनल का जन्म जिस परिवार में हुआ था। मैं जान चुका था, वह काँटों से घिरा हुआ था। सोनल जैसे गुलाब की उन काँटों से रक्षा करने के लिए मैंने पुलिस की नौकरी को स्वीकार।”7
सुक्खी को बाद में समझ आया की अपराधी का गोली तो किसी भी व्यक्ति का सीना चिड सकता है, तब वह यह नहीं देखता की सामने कौन खड़ा है। वहाँ गाँव में सोनल के चाचा को अपनी गलती का एहसास जेल के दौरान हो जाता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होता हैं, उनकी दोंनों बेटियाँ पुलिस के हाथों मारी जा चुकी होती है। सोनल को इस नरक में डालने में उनका भी हाथ था, वरना आज सोनल की ज़िन्दगी इतनी बर्बाद नहीं हुआ होता। मंगल के शब्द अपने ससुर के लिए-” कोई बीच में न आए…….इसने मेरा हँसता-खेलता परिवार तबाह कर दिया। इसके लालची परिवार ने मेरा सब लूट लिया।”8
सोनल के संघर्ष के चलते ही अंत में बलदेव पकड़ा गया था, अपने गिरोह के साथ। बलदेव की सबसे बड़ी बेवकूफी यह थी कि उसने हीरों के लालच में सोनल जैसी पढ़ी-लिखी लड़की को अपने जाल में फंसाया और अंत में खुद ही अपने जाल में फँस गया। वरना पंजाब के कितनी ही लड़कियां होगी, जो बलदेव जैसे लोगों के चंगुल में फँसने के बाद अपने देश वापिस ही नहीं आ पाती हैं, क्योंकि ज्यादा पढ़ी-लिखी न होने के कारण वह पुलिस को कुछ भी बताने में असमर्थ होती है और जीवन भर मर्दों की तरह जेलों में जीवन बिताने को मजबूर होते है। इन लड़कियों के इस स्थिति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उनके माता-पिता है जो एन. आर. आई लड़के का विवाह प्रस्ताव आने पर बिना उसकी जाँच-पड़ताल करे शादी के लिए हाँ कर देते है। जबकि पंजाब में तो ऐसे कितनी ही घटनाएँ टीवी और अख़बारों में देखने को मिलता है। इन सबके बाद भी वह बार-बार अपनी गलती दोहराते है, तब माता-पिता यह तक नहीं सोचते क्या उनकी बेटी ऐसे देश में रह सकेगी जहाँ पहले वह कभी रही नहीं। उन अजनबियों के बीच जहाँ वह किसी को जानती तक न हो? न ही उनकी भाषा समझ सकने में सक्षम हो? बेटियाँ माँ-बाप के लिए इतनी बोज तो नहीं कि उनका विवाह किसी से भी करवा दिया जाएँ और उसके बाद उसकी और देखा तक न जाएँ?
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि आज की स्त्री को अपने फैसले खुद लेना सीखना होगा, क्योंकि जब तक वह दूसरों के कहे अनुसार चलती रहेगीं तब-तब उसे ऐसे ही ठोकरे मिलती रहेगीं। क्योंकि जरुर नहीं होता की आप के परिवार वाले जो फैसला ले वही सही हो, कहीं जगह वह भी गलत हो सकते हैं। उपन्यास की नायिका सोनल को ही ले लिजिएँ अगर वह परिवार की बात में आकर शादी न करती तो वह मानव तस्करी करने वालों के हाथ न लगती। सोनल तो पढ़ी-लिखी थी और साथ में सुक्खी भी उसके साथ था इसलिए वह इन सब से बाहर निकल पाई। वरना वह भी किसी जेल में मुर्दों की तरह जीने को विवश होती। अंत: माता-पिता के साथ लड़की को भी यह पता होना बहुत जरुर है की जिस से वह विवाह कर रही है, वह अच्छा व्यक्ति तो है न, क्योंकि जीवन उसने बिताना है, उसके माता-पिता ने नहीं।

संदर्भ ग्रंथ सूची:
1. ढींगरा, सुधा ओम, नक्काशीदार केबिनेट, सीहोर(म. प्र.), शिवना प्रकाशन, प्रथम संस्करण,2016, पृष्ठ संख्या-24
2. वही, पृष्ठ संख्या-51
3. वही, पृष्ठ संख्या-54
4. वही, पृष्ठ संख्या-58
5. वही, पृष्ठ संख्या-64
6. वही, पृष्ठ संख्या-69
7. वही, पृष्ठ संख्या-90
8. वही, पृष्ठ संख्या-100

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