prakriti

1. ऐ प्रकृति
ऐ प्रकृति हमसे कुछ कहती है।
तुम्हारे सारे शिकवें हमें सवीकार है।।
ऐ प्रकृति तेरी हवाएं हमें सुकून देती है।
तेरी बेचैनी को हम बखूबी समझते हैं।।
ऐ प्रकृति तू हमसे इतना नाराज़ क्यों है?
माना हमसे गलती हुई मगर इतनी सज़ा मत दें।।
ऐ प्रकृति अब तू हम पे भी कितना कहर धा रहा।
तुम्हारी इस दहाड़ से जगत सहमा सा नजर आता है।
ऐ प्रकृति हमसब तेरे गुनाहगार है।
हमसब तेरे सितम से घायल से हैं।।
ऐ प्रकृति अब हमपे तरस खा ज़रा।
हमलोग तेरी शरण मे आ गए, ऐ प्रकृति।।

2. प्रकृति का कहर
सुना है बहुत
भीषण बाढ़
आया है
पृथ्वी कहारती
रही पीड़ा है।
बारिश आई
धरती तृप्त हुई
मोर छुप गई
चैन उसे भी न आए।
रास्ते कंटीली है
चलना मुश्किल है
सीना छलनी है
फिर भी निकल पड़े हैं।
सुहाना मौसम है आई
संग लाई है खुशहाली
उपवन में फूल खिलने लगे हैं
घोसलें में चिड़िया चहचहाने लगे हैं
धरतीवासी ख़ुशी से गुणगान किये जा रहे हैं।

3. कुदरत हमसे बातें करती है
कुदरत अक्सर हमसे बातें करती है
जल कहता है हमसे
जिस रंग में मिले उसी रंग के हो जाए
घने काले बादल कहता है हमसे
धरती की प्यास बुझाने को मैं आतुर हुई हूँ
कुदरत अक्सर हमसे बातें करती है
हवाएं कहती है हमसे
निरंतर बढते चलो
अग्नि कहती है हमसे
गैरों के खुशी के लिए खुद को जलो
कुदरत अक्सर बातें हमसे करती है
पहाड़ कहता है हमसे
खुद को बुलंदी तक उठाओ
पेड़-पौधें कहते हैं हमसे
संसार को शीतलता पहुँचाओ
कुदरत अक्सर बातें हमसे करती है

4. सुहाना मौसम
सुहाना मौसम लाने के लिए सुक्रिया,
सुना है बारिस का सौगात लाने के सुक्रिया
पृथ्वी में छुपा अपनी घास की चादर ओढा रही
कर रही पृथ्वी को हरा भरा करने को आई है बारिस
मिट्टी से जुड़े लोग लगे हुए है अपने काम में
लगने लगे है पेड़- पौधे और किसान कितने खुशहाल है
अपने गांव में ही काम आने लगे हैं
किसान खेतों में बिचड़ा करने में लगे पड़े हैं माँ ने चटपटे पकवान बनाने में
खुद की चिंता किये बैगैर लगी पड़ी है
सुहाना मौसम होते ही क्या खूब
नज़ारे दिखाएं, रिमझिम बारिस के बूंदे ने
अब कहें ‘प्रेम’ कविराय,
हम सब मिलकर बारिस
के मौसम का आनंद उठाते हैं।

5. प्रकृति की दास्तान
ए मनुष्य! तुम सोचो जरा,
हमें नासों व नाबूत क्यों करना चाहते हों?
हमलोग तो सदैव तुम्हारे साथ दिए है,
सदा पृथ्वी को स्वर्ग बनाया है हमने।।
तुम्हारे और संसार के लोगों की,
सदियों से रक्षा करते आया हूँ?
तुम मुझे क्यों काटने पर उतारू हो
क्यों काटते चले आ रहे हों?
हमलोग को यू काटते चले गए
तो पृथ्वी बंजर हो जाएगी एक दिन,
तुम अपना पेट कैसे भर पाओगें
संसार और क्या खाओगे फिर?
तुम सब मेरी वजह से साँसें ले पाते हों
मेरे वजहसे तुम्हरा जीवन चक्र चल रही है
सिर्फ हमलोगों की वजहसे
धड़कता है दिल तुम्हरा,अब भी समय है
ए मनुष्य सम्भल जाओ
कहें “प्रेम” कविराय,
मेरे जाने के बाद सिर्फ
तुमलोग अफसोस करते रह जाओगे।।

6. पेड़ का दर्द भरा जीवन
बड़े जतन से किसी ने
कई वर्षों पहले लगाया था
हवावों ने ठंडी गर्मी झोंको से
मस्त छैल-छविलें की तरह
लोरी गा गाकर सुलाया था।
अब मैं घना पेड़ का
आकार ले लिया हूँ अब मैं
पौधे से पेड़ बन गया हूँ।
मन में कई ख्याल आता है
तब जाके विचार करता हूँ
संसार के सभी मनुष्यों से
प्रश्न पूछता हूँ?
सब पेड़ों की भाँति
मुझे भी काट दोगे?
सब पेड़ों की भाँति
क्या मैं भी भरा पूरा इस जीवन
मैं अकस्मात मृत्यु पाउँगा?
हमें बेरहमी से मेरे सीने
पर कुल्हाड़ी से वार करोगें?
क्यों हमें दरिद्रता से सीने
को मेरे छलनी-छलनी करोगें?
तुम्हारे सुख दुःख का साथी हूँ मैं
तुम्हारे जीवन जीने के लिए साँसे देता हूँ
तुम मुझें काटने को उतावले हो?
मैंने तुमलोगों से कभी नही कुछ लिया
सिर्फ तुम्हें दिए है, कभी फल के रूप में,
कभी ऑक्सीजन के रूप में,
कभी लकड़ी के रूप में,
यहाँ तक की घर मे दरवाजा के रूप में
यहाँ तक तुम्हें बैठने का आसन भी दिया
मैं तुम्हें देता हूँ, तुम पे सदा अपकार किया
तुम मुझे क्यों मार रहे हों
मत काटो मुझें मुझे बहुत दर्द होता है
मेरा गुजारिश है
तुमलोगों से मत करो अपने से अलग
सुन लो मेरी विनती है

7. प्रकृति का प्रकोप
बिन बादल बरसात कहीं
इसके बाद लोगों का बुरा हाल,
कहीं पत्थर तो कहीं सूखा,
फिर उसके बाद नदी का प्रकोप देखो
उसके बाद नदी की अल्हड लहरें,
कहें ‘प्रेम’ कविराय, प्रकृति का प्रकोप देखों भाई

कविताएँ:-
1. ऐ प्रकृति
2. प्रकृति का कहर
3. कुदरत बातें करती है
4. सुहाना मौसम
5. प्रकृति की दास्तान
6. पेड़ का दर्द भरा-जीवन
7. प्रकृति का प्रकोप

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