जिस धरती पर लेकर के जनम
ईश्वर भी हैं हर्षित होते
जहाँ अपनी लीला करने को
हैं देवता आकर्षित होते
जहाँ नदियों का पावन संगम
जहाँ सागर गाते हैं सरगम
जहाँ पर प्रकृति पूजी जाती
जहाँ पत्थर में भी मिलें शिवम
जहाँ देवों से बढ़कर माता
जहाँ पूजनीय भोजनदाता
जहाँ अतिथि की हो सेवा इतनी
कि अतिथि देव समझा जाता
जिसके पद-तल में सागर-जल
माथे पर जिसके मुकुट धवल
पश्चिम में जिसके ज़ौहर व्रत
पूरब में अद्भुत अरुणांचल
वह हिंद देश की तपो भूमि
जहाँ देश पे जान गँवाते जन
जहाँ गोली खाकर सीने पर
हँसते-हँसते मर जाते जन
मैं उसी देश का वीर पुत्र
कहते सतीश ‘नैतिक’ मुझको
हे! पतित पावनी पावन भू
करता मैं कोटि नमन तुझको