ab madari ho gaye

खुद पर ही खुद के फैसले,अब भारी हो गए
कल तलक था सब कुछ,अब भिखारी हो गए

बदल गया है दुनिया का चलन कितना यारों,
कभी थे जो शिकार खुद अब शिकारी हो गए

क्या याद करना अब उन गुज़रे हुए लम्हों को,
कल तक तो हम ही हम थे,अब अनाड़ी हो गए

यारों न आया आज तक भी लगाना दाँव हमको,
मगर इधर तो सारे लोग ही,अब जुआरी हो गए

न आता था कभी जिनको जुबां चलाना भी यारों,
कमाल है कि हर फन के वो,अब खिलाड़ी हो गए

वक़्त बदल देता है लोगों की किस्मत को ‘मिश्र’,
जो दिखते थे कल तक जमूरे,अब मदारी हो गए

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