samajh

कभी गमों के साये में जिये
तो कभी खुशी के महौल में।
जिंदगी को जीने के कई
नये-नये तरीके मिले।
बदलते मौसम के साथ
हम भी जीने लगे।
और इरादे भी समयानुसार
हम भी बदलने लगे।।

भले ही ये सब करने से
हम खुश न हो।
परन्तु दुसरो की खातिर
ये सब करके अब जी रहे है।
और अपने जीवन को
घुट-घुट कर जी रहे है।
ये कमबख्त मौत भी तो
अब जल्दी आती नहीं है।।

इरादे कुछ और रखते थे
हम इस जमाने में।
समझ नहीं पाया
लोगों के मनसूबो को।
तभी तो खुदगर्ज बन बैठा
स्वयं की ही नजरों में।
लगाये किससे हम गुहार
अपनी पापो को धोने की।।

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