chhath parv

छठ तिथि शुक्ल पक्ष कार्तिक में,
मनाया जाता ये अनुपम छठपर्व।
सूर्यदेव की उपासना का पर्व यह,
सौर मंडल के सूर्यदेव का है पर्व।।

सूर्योपासना है सर्वश्रेष्ठ पर्व की,
सूर्योपासना की थी अत्रि पत्नी ने।
और श्रेष्ठतम इस व्रत को किया ,
सत्यवान भार्या सती सावित्री ने।।

सावित्री को राजा अश्वपति जी ,
सूर्योपासना से कन्या रुप में पाये।
और सावित्री ने ही यमराज से,
पति सत्यवान के प्राण बचाये।।

सूर्य पुत्र यम से नचिकेता जी ने
कर्मयोग की थी शिक्षा पाई।
सूर्यदेव का पाकर सानिध्य,
हनुमत ने व्याकरण शिक्षा पाई।।

सूर्य तेज के ही प्रभाव से कुन्ती ने
जन्मा कर्ण सा तेजस्वी वीर।
कवच कुंडल संग जन्में थे कर्ण ,
जो थे अर्जुन सम ही परमवीर।।

सूर्य उपासना से ही युधिष्ठिर को
मिला था भोजन अक्षयपात्र।
सूर्योपासना से ही राम ने,
किया था रावण का संहार।।

नभ मंडल में नव प्रकाशमय,
आरोग्य देव कहलाते हैं सूर्य।
उदय में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु
संध्याकाल शिव होते हैं सूर्य।।

छठपर्व का सार कुछ यही है
और यही है पौराणिक वर्णन ।
अपनी पत्नी संज्ञा को लाने
गये सूर्य में विश्वकर्माजी के घर।।

विश्वकर्मा जी संग लेकर भार्या,
संज्ञा, सूर्य की करें आवभगता ।
प्रातकाल ही विश्वकर्मा जी ने,
सूर्यदेव संग भेजी संज्ञा सुता।।

मान्यता है संज्ञादेवी ही तब से,
छठी माता रुप में पूजी जाती।
ठेकुआ, फल, फूल आदि से,
विदाई उनको अर्पित की जाती।।

सूर्य संग संज्ञा का संध्या स्वागत
और प्रात:काल में अर्ध्य का अर्पण।
शाम को कर विदाई की रस्म,
पूरा होता छठ व्रत का नियमन।।

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