जीवन के 25 वसन्त में यह तीसरी दिवाली होगी जब बिना पिता जी के आशीर्वाद के दिवाली बनाई जाएगी और मेरे जहन में वो यादें हमेशा ताज़ा बनी रहेंगी जो पिता जी के साथ बनी थीं। उन्हें ताउम्र अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक सुनहरी यादों के रूप में संजों कर रखूंगा। मुझे आज भी याद है। बचपन में मैं अपने से ठीक 2 साल बड़ी बहन से लड़ाई करता था भयंकर वाली और अमूमन बचपन में हर भाई-बहन यदि तरह लड़ते-झगड़ते रहते हैं। फिर कोई बड़ा या माँ-बाबा उन्हें छुड़ाते हैं। मैं भी इसी तरह बड़ा हुआ। 7 भाई बहन में सबसे छोटा- लेकिन राजस्थान में कहावत है- “छोटा सबसे खोटा” अपने पिता के लिए, माँ के लिए कोई भी औलादें खोटी नहीं हुआ करती। मैं अपने पिता के साथ 5-10 मिनट से ज्यादा नही बैठ पाता था कारण एक पूरी पीढ़ी का अंतराल। लगभग 40-45 वर्ष का उम्र का गैप। सबसे बड़ी दीदी जब 12th में थी तब मैं पैदा हुआ था। मेरे लिए मेरे पिता ने 3 बहनों को और जन्म दिया। वो कहते थे “एक आंख का क्या मिचना क्या खोलना” मतलब एक लड़के का क्या अगर मेरे से पहले चल बसा तो मुझे कंधा कौन देगा। वो थोड़े पुराने ख्यालात के थे शायद इसीलिए मेरी उनसे नहीं बनती थी। लेकिन आज अपने पिता की सारी परम्पराओं और रूढ़ियों को निभाने का बड़ा मन करता है। वो जातिवादी थे, क्षेत्रवादी थे उससे भी बड़े गणितज्ञ और बिजनेस मैन थे। मैं भी उन्हीं का खून हूँ तो थोड़ा जातिवाद, क्षेत्रवाद मेरे में भी आने लगा उनके जाने के बाद। न जाने क्यों उनकी हर बात मुझे सही लगती है। पिता जी के पास बैठ कर गणित के सवालों को हल करना, हालांकि वे बिल्कुल निरक्षर थे, अंगूठा छाप। लेकिन अपने सम्पूर्ण जीवन में उन्होंने ढ़ेर सारे भाई-बहन बनाए, सगे भाई-बहन के इतर और सगे भाई बहनों जैसा ही रिश्ता उनके जाने के बाद भी कायम है। रिश्ते नातेदारों के अलावा उन्हें मान-सम्मान और धन-दौलत भी खूब बनाई। पिता जी कुछ कहावतें हमेशा दोहराते थे। मसलन
“खाना मां के हाथ का ही हो भले जहर
बैठना भाइयों में ही हो भले बैर”
“कबीरा तेरी झोपड़ी नस कटियों के पास
करे सो भरे तूं क्यों भये उदास”
पिताजी हमेशा एक ही सीख देते थे सबको कि बेटा नियत साफ रखो क्योंकि नियत के ही फल लगते हैं। जैसी नियत होगी वैसा ही पाओगे।
पिताजी एकदम धार्मिक इंसान थे, और मैं थोड़ा अधार्मिक। जब दिवाली होती तो दिवाली वाले दिन पूरे दिन वे मुझे बाजार घुमाते पैदल-पैदल। शहर में दिवाली वाले दिन भीड़ रहती और वाहन पिता जी को चलाना नहीं आता था। वे पूरे बाजार में घूम कर सामान खरीदते और शाम तक घर लौटते पूजा के समय से ठीक 1-2 घण्टा पहले। मुझे आज भी याद है जब तक मैं 5वीं क्लास में नहीं आया तब तक वे रोजाना मुझे स्कूल से लेने आते थे। साइकिल पर पीछे चारे की बोरी के ऊपर बैठा कर लाते थे मुझे साथ में कई बार मां भी होती थी जो कड़ी धूप में मुझे कपड़े से ढक देती थी। मेरे पिता के अनपढ़ होने का लोगों ने और बनियों ने बहुत फायदा उठाया। उनसे उनके मकान छीन लिए या धोखे से साइन करवा लेते थे। जब तक हम लोग समझ पाते पिता जी बहुत कुछ इसी तरह लुटा बैठे थे। वे मुझे CA बनाना चाहते थे इसीलिए मुझे कॉमर्स दिलाया गया। लेकिन मैं 11th और 12th कॉमर्स से करके दिल्ली विश्वविद्यालय आ गया। बीकॉम किया उसके बाद हिंदी साहित्य की और रुख किया। पिता जी ने बहुत कहा जी जितना रुपया लगे लगने दो इसे CA बनाओ। लेकिन मैंने मना कर दिया और प्रति उत्तर में कहा कि जितनी मेहनत CA बनने में करूँगा उतने में तो IAS (आईएएस) बन जाऊंगा। लेकिन मुझे कुछ अलग करना था वो अलग क्या करूँगा वो मैं भी नहीं जानता शायद। ख़ैर हम 7 भाई बहन में 5 बहने और दो भाई थे। मैं जब भी अपने चौथे नंबर वाली बहन के साथ बाइक पर निकलता तो गली मोहल्ले वाले थोड़ा सम्भल कर चलते थे, कारण मेरा तेज गति से हवा में बाते करते हुए बाइक चलाना और बार बार पीछे से बहन का टोकना, उसका टोकना मुझे और उत्त्साहित करता। लेकिन जब पिता जी साथ होते तो बड़ा सम्भल कर चलाना पड़ता था। पिता जी के साथ दिवाली के दिन आशीर्वाद लेने के बाद घर में बने स्पेशल पकवान और मिठाई का आनंद तो अब कभी नहीं ले पाऊंगा। उनके जाने के बाद जैसे सारे त्यौहार फ़ीके से हो गए हैं। वैसे दुनिया सही कहती है इंसान की कीमत उसके न रहने पर ही पता चलती है। पिता की सीखों को कितना निभा पाया हूँ या निभा पाऊंगा मैं नहीं जानता। लेकिन इन 10 महीनों में अक्सर मैस में खाना खाते हुए या घर पर बड़ी बहन से बात करते हुए पिता जी याद आ जाते हैं तो फुट-फुट कर रोने लगता हूँ। कभी-कभी बीच सड़क या लाइब्रेरी में भी रोने लगता हूँ, लेकिन दुनिया को भान न हो इसलिए अपने रोने को और आंसुओं को छिपाने का भरसक प्रयास करता हूँ। पिता जी के जाने के बाद बेहद कमजोर और अकेला महसूस होता है। यह मेरे जीवन की अपूर्णीय क्षति है जिसे कोई पूरा नहीं कर पाएगा। 4 जनवरी को उनके जाने से पहले नए साल की पूर्व सन्ध्या पर उनसे मुलाकात हुई जिसमें उन्होंने ढ़ेर सा आशीर्वाद दिया दुआएँ दीं। पिता जी को मेरे हाथ का खाना पसंद आता था। क्योंकि उन्हें लहसुन और प्याज वाला खाना पसंद था। वैसे जब स्कूल टाइम में माँ मुझे खाना बनाना सिखाती थी तो पिता जी और बड़ा भाई डाँट देते और कई बार इस चक्कर में मार भी खाई थी। लेकिन कई बार जब कई बार जब मेरा खाना बनाने का मन करता मैं बनाता फिर भी और भाई या पिता जी खाते और खाने की तारीफ करते तो माँ बताती की लड़के ने बनाया है। मैं सबसे छोटा था और अपने मौहल्ले के लड़कों में भी सबसे छोटा। मेरे हम उम्र की सिर्फ लड़कियां ही थी या 5 बहनों का भाई होने के नाते घर में भी उनकी सहेलियां आती थीं उनके बीच ही स्कूल टाइम गुजरा। इसलिए स्वाभाविक था घर का काम करना सीख जाना और रसोई का भी उनके साथ बैठ कर चुगलियां करना। यही कारण रहा कि घर वालों के साथ साथ बाहर वालों ने भी मुझ में एक लड़की को ही देखा और कहते ये तो तुम्हारी छठी बहन है और ऐसा कहते ही सब फ़्फ़का मार कर हंसने लगते। घर में कोई भी मेहमान आता तो पानी और चाय पकड़वाने का काम मेरा ही होता। पिताजी अपने जाने के बाद जमीन जायदाद तो खूब छोड़ कर गए किन्तु साथ ही दो बहनों के साथ मुझे भी अविवाहित छोड़ गए। काश की अपने रहते हुए वे बाकी 2 बहनों का भी कन्यादान कर पाते। किन्तु शायद हम ही अभागे थे जो उनके हाथ ये कार्य सम्पन्न नहीं करवा पाए। तीसरे नंबर की और पांचवे नंबर की बहन के लिए वे बेहद चिंतित थे और उनके अंतिम समय तक मैंने उन्हें कई रिश्ते दिखाए ओर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। ख़ैर बात दिवाली की हो रही थी तो दिवाली वाले दिन सबके नए कपड़े आते पिताजी के काम करने वाले औजार (पिताजी मकान बनाने का काम करते थे।) और माँ के गहनों को पूजा में रखा जाता उनकी भी पूजा होती। पिता जी पूजा के बाद सबको आशीर्वाद देते। मुझे हमेशा कहा जाता पहले पैर छुओ उसके बाद पूजा घर से बाहर जाओ। सारी रात हमारे यहां दिवाली वाले दिन किसी न किसी को जगना पड़ता। राजस्थान में ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी का आगमन हर घर में होता है और अगर हम सोते रहे तो वो नहीं आएगी। मंदिर कमरे में ही था तो उस कमरे में सोने की किसी को इजाजत नहीं होती। खूब पटाखे बजा लेने के बाद अंदर आते फिर पकवान खाते और मैं हमेशा की तरह पिताजी के पास सो जाएक करता। दिवाली वाला दिन मेरा खास होता पिता जी के पास सोने से वह और खास बन जाता। वैसे भी सोता था पर माँ और बहनों के ज्यादक नजदीक रहा बचपन में। अब जब पिता जी नहीं है और मैं बि दिल्ली में हूँ अकेला तो पिताजी की याद आना स्वाभाविक है। घर से दूर और पिताजी के बिना यह पहली दिवाली है पहली काली दिवाली आगे न जाने और कितनी काली दिवाली आएंगी। कथा कहानियों में बहुत सुना है कि कोई तीन चीजें मांग ली किसी ने और वो उसे मिली या फलां व्रत करने से सावित्री का पति वापस जी उठा। ये सब ढकोसले और बेकार की बातें हैं ताकि मनुष्य अधर्म का रास्ता न अपना ले। अगर ऐसा सम्भव होता तो मैं पिता को ही मांगता। पिता जी ने अपनी सभी जिम्मेदारियों को जिम्मेदारी समझा और भली प्रकार उन्हें निभाया। अब जब वो नहीं है तो उन्हें ही अपने सबसे करीब मानता हूं। बिना पिता के पहली दिवाली न जाने कैसे गुज़रेगी। आप सभी को दिवाली की हजारों हजार शुभकामनाएं, खूब मिठाई खाएं पटाखे बजाएं और हो सके तो अपने माँ – बाबा का आशीर्वाद लेना न भूलें। साथ ही दुआ करें पिता जी को ईश्वर के चरणों में स्थान मिले। वैसे राजस्थान में एक टोटका किया जाता है किसी के मरने के बाद। 9 दिन तक उस जगह दीपक जलाया जाता है एक छोटा सा मिट्टी का ढेर बनाकर उसके ऊपर दीपक रखा जाता है। जहां उस मरहूम को रखा जाता है। ठीक 9 दिन बाद बहुएं उस जगह को साफ करती है उस दीपक को हटाती है और दीपक उठाने के बाद उसके नीचे जो निशान बना होताक़ है उससे अंदाजा लगाती हैं कि उसकी आत्मा किस योनि में प्रवेश कर गई है। पिता जी के लिए जब ऐसा किया गया तो एक नन्हे बालक के पैर जैसे कुछ निशान बने और उससे भाभियों (ताऊ जी की बहुएं, मेरे पिता जी मेरी ही तरह अपने घर में सबसे छोटे थे।) ने अंदाजा लगाया कि पुनः मनुष्य योनि में पिता जी ने जन्म लिया है। इस नश्वर दुनिया में वो न जाने कहाँ होंगे फिर भी मैं उनका पुनः स्वागत करता हूँ। सभवत: वे अपनी पूरी जिंदगी नही जी पाए इसलिए या फिर वाकई उन्होंने पुण्य कमाया इसलिए मनुष्य योनि मिली। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य योनि में मनुष्य को जन्म 86 लाख योनियों में भटकने के बाद मिलता है। पिता जी के पैर में नीचे तिल था और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिसके पैर में तिल हो वह राजा का सा जीवन व्यतीत करता है। उसका हुक्म (अपनी प्रजा यानी परिवार में) बखूबी बजाया जाता है। शायद यही कारण है घर में सबसे छोटे होने पर भी सब लोग उनकी सुनते थे और उनके हुक्म के आगे किसी की नहीं चलती थी। हुक्म का बादशाह अब इस दुनिया में नहीं है किंतु मैं फिर भी उन्हें ढेरों शुभकामनाएं देता हूँ। वे जहां कहीं भी हो खुश हों।
Heart touching story
शुक्रिया सर
comment less hai ye Jeevan
Sab Baba ki Mar ji
सहमत शुक्रिया