ऑनर किलिंग पर बनी यह फिल्म हार्डहिटिंग है और फिल्म सैराट से प्रेरणा लेती दिखाई देती है। ऑनर किलिंग पर बनी ‘प से प्यार फ़ से फ़रार’ कोई इस तरह के विषय पर बनने वाली पहली या आखरी फ़िल्म नही है। लेकिन इस फ़िल्म के बारे में कुछ ऐसा है जो सरासर बेईमानी सा प्रतीत होता है। ऐसी थीम पर फिल्में, विशेष रूप से नागराज मंजुले की ‘सैराट’ दृष्टिहीनता में अधिक दिखाई देती है और जो वर्तमान है वह उस फिल्म का मुख्य स्रोत होता है।
मुझे लगता है कि यह अजीब तरह की सी फिल्म है फ़िल्म में कभी-कभी संजय मिश्रा का आना जरूर आंखों और दिमाग को सुकून देता है। क्योंकि संजय मिश्रा अपने अभिनय और अदायगी को घूँट-दर-घूँट पिया है, (जो एक प्रासंगिक कैमियो में, युवा युगल को नोटिस करते हैं कि वे जो नहीं कर रहे हैं, वह नाटक के विषय में है) फ़िल्म घृणा और घृणा के विषय के साथ रखने में सफल हुई है।  बावजूद इसके कहीं कहीं निराशा भी हाथ लगती है। फ़िल्म की कथा के माध्यम से उच्च वर्ग की लड़की जान्हवी (नवोदित ज्योति कपूर) के साथ सोनू (नवोदित भावेश कुमार) के साथ अभिनय किया है।
फ़िल्म बताती है कि प्रेमी कॉलो, अनाड़ी और अदूरदर्शी होते हैं। हालांकि इसके पात्र खुरदरे हैं लेकिन एक चीज जरूर खलती है और वो यह कि इस फ़िल्म के संवादों में कोई धार नहीं है। समय बर्बाद किए बिना, कथा, सामाजिक उद्देश्य की भावना से बुदबुदाती है कि यह अपनी आस्तीन पर बिना कपड़े पहने, तनावग्रस्त होकर, खून में नहाती हुई यात्रा और कयामत में तैरती है।  हम फ़िल्म में मथुरा से दिल्ली तक के कुछ सबसे कठिन पहाड़ी इलाकों से दो भोले-भाले  प्रेमियों का अनुसरण करते दिखाई देते हैं, लेकिन उनमें से कोई भी ऐसा नहीं है, जैसा कि पितृसत्तात्मक अहंकार के साथ फिल्म के बीहड़ स्थानों पर कब्जा करने और आक्रमण करने वाले पितृसत्तात्मक मानसिकता के रूप में होने चाहिए।
संजय मिश्रा और शेरगिल दोनों ने हर फ्रेम को आग और रोष से भर दिया है। जाति और वर्ग के भेदभाव के विषय पर कुछ प्रासंगिक सवालों को आगे बढ़ाने के लिए कथा का दूसरा भाग विराम देता है।  वयोवृद्ध गिरीश कुलकर्णी एक ऐसे रिश्तेदार के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं, जो दंपति को अपने जीवन के जोखिम में मदद करता है और उन्हें एक अजीब घुमंतू अस्तित्व से परिचित कराता है, जहां जाति मायने रखती है और जहां नैतिक मूल्य सौम्य हैं।
भारत के सभी खेल चर्चाओं में क्रिकेट को बहुत महत्व दिया गया है, जिसका अनुचित संदर्भ है। युवा नायक राष्ट्रीय खेलों में प्रतिस्पर्धा करके अपने सामाजिक पिछड़ेपन से बचने के सपनों के साथ भाला फेंकने वाला है। कहने को हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, मगर अभी भी हिंदुस्तान के कई इलाकों में जात-पात, ऊंच-नीच, छुआछूत का जहर समाज में घुला हुआ है। पिछले दिनों बहुचर्चित फिल्म सैराट और उसका हिंदी रूपांतर धड़क, आयुष्मान खुराना की आर्टिकल 15 आयीं, जो ऐसी ही सामाजिक बुराइयों पर आधारित फिल्में हैं। अब इस सामाजिक बुराई पर करारी चोट करती फिल्म ‘प से प्यार फ़ से फरार’
फ़िल्म की कहानी है ओमवीर सिंह की (कुमुद मिश्रा) जो अपने समाज का नेता है। जिसका मानना है कि लड़कियों की शादी मां-बाप की मर्जी से ही होना चाहिए और समाज में ही होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके लिए खून-खराबा करने से भी पीछे नहीं हटते। दूसरी तरफ ओमवीर सिंह का भाई राजवीर सिंह (जिमी शेरगिल) है, जो एक समझदार इंसान है और जिसका हिंसा पर कोई विश्वास नहीं। इसलिए समाज के लोग उसे नेता की तरह मानते भी नहीं। ऐसे में एक ऐसी घटना घटती है, जिससे ओमवीर का पूरा परिवार हिल जाता है। ओमवीर की बेटी (ज्योति यादव) अपने प्रेमी सूरज माली (भावेश कुमार) के साथ भाग जाती है।
इसके बाद घर में क्या होता है, समाज में क्या होता है। क्या इन दोनों का प्यार सामाजिक रीति-रिवाजों के चलते मंजूर हो पाएगा? यही फ़िल्म में देखना है। अभिनय कि अगर बात करें तो कुमुद मिश्रा पूरी फिल्म में छाए रहे। राजवीर के किरदार में जिमी शेरगिल भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
डेब्यू कर रहे भावेश कुमार में काफी संभावनाएं नजर आती हैं। ज्योति सिंह अभिनय के मामले में एकदम अंजान है। बाकी छोटे-छोटे किरदारों में संजय मिश्रा, जाकिर, बृजेंद्र काला और गिरीश कुलकर्णी प्रभावित करते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा की प से प्यार फ से फरार सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार तो है मगर एक खूबसूरत अंदाज में। भले ही इसमें बड़े स्टार ना हों मगर यह फिल्म मनोरंजक है, आप इसका आनंद ले सकते हैं।
#प से प्यार फ़ से फरार
अपनी रेटिंग – 3 स्टार
कलाकार- जिमी शेरगिल, कुमुद मिश्रा, भावेश कुमार, संजय मिश्रा आदि।
निर्देशक- मनोज तिवारी
निर्माता- जोगेंदर सिंह

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