lakshya

कहानी शिक्षा व्यवस्था में  व्याप्त अनियमता अनैतिकता अराजक व्यवस्था पर प्रहार करती है और सन्देश देती है कि किसी भी देश
राष्ट्र समाज देश में  शिक्षा कि बुनियाद यादि निष्पक्ष मजबूत ईमानदार सामाजिक कल्याणकारी व्यवस्था नहीं है तो राष्ट्रीय समाज का
विकास नहीं होता बल्कि समाज कुंठित हो अनैतिक आचरण और व्यवहार के मार्ग पर चल पड़ता है जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र कि प्रतिष्ठा
धूमिल होती है क्योकि किसी भी राष्ट्र कि विश्व में पहचान उसके सामाजिक संगठन शिक्षा और नैतिलता के बुनियाद पर ठीका होता है
जिसकी मजबूत आधार समाज कि शिक्षा का स्तर होता है और उसकी रीड राष्ट्र कि शिक्षा प्रणाली होती है जिसकी मूल जिम्मेदारी
समाज को सभ्य सार्थक और उपयोगी बनाना होता है।कहानी में सरकारी स्कूल में नई प्रधानाचार्या कार्य भार ग्रहण करती है।कार्य
भार ग्रहण करने के उपरांत स्कूल के स्टाफ के साथ मीटिंग में वे  अपने माप दंड और लक्ष्यों को स्टाफ को बताती है ।कुछ को।उनकी
बात अच्छी लगाती है और बहुतों को बहुत बुरी बहुत कम लोग स्टाफ में ऐसे  है जिनकों प्रिंसिपल कि बात विल्कुल समझ में ही नहीं
आती है।क्योकि स्कूल के इतिहास में एसे अवसर  कभी नहीं आये जब कोई प्राचार्य इतना समर्पित हो अब तक सभी आये और समय
बिता कर चले गए।
नई प्रिंसिपल द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के उपरान्त स्चूल के एक एक कमरे का निरिक्षण करना और विद्यालय के पिछले वर्षो के
परिणाम और व्यवस्थाओं कि बारीकी से जानकारी उनके कारण कारक कि जानकारी हासिल करना और उन दुर्व्यव्यवस्थाओं को
दुरुस्त करने के लिये कृत संकल्पित होना दृढ़ इच्छा शक्ति का द्योतक और समर्पित दृढता के व्यक्तित्व के प्रिंसिपल के व्यक्तित्व को
दर्शाता है जो उस स्कूल में कार्य भार ग्रहण किया है जो एक छोटे से कस्बे में स्तित है और वहां गरीब परिवारों कि ही लडकिया पड़ती
है जिनके माँ बाप प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सकने में सक्षम नही हौते।विद्यालय में शिक्षको कि कमी पिने के लिये पानी कि समूचीत
व्यवस्था नहीं क्लास रूम कि दीवारों से गिरते प्लास्टर आदि शिक्षा के मूल अधिकार कि प्रक्रिया के प्रति लापरवाही भ्रष्टाचार और
उदासीनता को कहानीकार ने बाखूबी बेबाक व्यंग प्रहार किया है।नई प्रिंसिपल और विद्यालय कि स्नातक चपरासी ।
नई प्रिंसिपल के पास स्कूल कि स्नातक चपरासी पानी का ट्रे लेकर जाती है प्रिंसिपल सवाल जबाब शिक्षा व्यवस्था में घोर उदासीनता
लापरवाही को उजागर करता है प्रिंसिपल पूछती है ::यहाँ फ़िल्टर नहीं है नहीं मैम इस स्कूल में आधुनिक शिक्षा के नाम पर कुछ भी
नहीं है कसबे वाले भी क़ोई रूचि नहीं लेते ::प्रिंसिपल का सवाल तुम कितना पड़ी हो सुनीता यही नाम है ना तुम्हारा जी मैम मैं

ग्रेजुएट  हूँ  सच::यह संबाद कई सवाल समाज के समक्ष खड़ा करता है तो कई वर्तमान अनैतिक परम्पराओं पर प्रहार भी करता है
स्कूल के ग्रेजुएट टीचर अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह और ग्रेजुएट चपरासी के दायित्व बोध के मध्य आज को विभाजित कर
परिभाषित कर देता है ।
नई प्रिंसिपल अपने जीवन का लक्ष्य निधारित कर लेती है की विद्यलय को एक आदर्श विद्यालय बनाकर रहेंगी ।सर्व प्रथम वे कक्षाओं
कि छात्राओं को चार वर्गों में उनकी मेधा शक्ति के अनुसार ए बी सी डी समूहों में बिभक्त कर स्वयं भी क्लास लेती है कोइ पीरियड
खली नहीं रहता वह स्वयं खली पीरियड में जा कर पड़ती है और ज्यो ज्यो छात्राएं अच्छा परिणाम देती है उन्हें छोटे छोटे पुरस्कारों
से सम्मानित कराती है और ऊपर के समूहों में सम्मिल्लित करती जाती है स्कूल का समय समाप्त होने के बाद भी क्लास लेती है ।अब
विद्यालय का कोइ क्लास खली नहीं रहता छात्राओं में भी नई ऊर्जा का संचार होता है ।नई प्रिंसिपल द्वारा अपने वेतन से क्लास रूम
के गिरते प्लास्टर का ठीक कराया जाता है अपने वेतन से ही पानी पिने का फ़िल्टर लगवाती है अब स्कूल में चौतरफा वातावरण
शिक्षा और अध्य्यन अध्यापन के अनुकूल हो जाता है और विद्यालय शिक्षा का मंदिर लगने लगता है ।यहाँ एक तथ्य काबिले गौर है कि
जब भी क़ोई व्यक्ति एक सदी गली व्यवस्था को साफ सुथरा कर ऊसकी प्रक्रिया को उसकी वास्तविक पहचान देने कि कोशिश करता है
तो उसे अनेको चुनौतियां जो पहले से प्रक्रिया या परम्पराओ को खोखला बनाने की जड़ है कि चुनौतियों से सामना करना पड़ता है यह
तथ्य नई प्रिंसिपल के कार्यभार ग्रहण करने के बाद स्कूल के शिक्षको से सम्बाद से परिलक्षित होता है-::आप छ लोग कल कहाँ थे
प्रार्थना के बाद प्रिंसिपल मैम ने पूछा मैम मई सी एल पर था प्रार्थनापत्र भी उपस्थिति पंजिका में रखा हुआ था अविनास जी बोले
।मेरी बेटी बीमार हो गयी थी अलका मैम संकोच से बोली  ।  क़ोई जरुरी काम से रुकना पड़ाआरती मैम ने कहा  । सोचिये प्रिंसिपल
ने सभी छ लोगों पर प्रश्न वाचक प्रश्न डालते हुए कहा छ छ टीचर एक साथ न आएं तो स्कूल कैसे चलेगा ::यह दर्शाता है कि
दुर्व्यवस्थाओं कि दुर्गन्ध में बैठे लोग किसी व्यवस्था को किस प्रकार से संक्रमित कर देते है।नई प्रिंसिपल के चौतरफा प्रयास रंग लाता है
और बोर्ड परीक्षाओं में दसवी और बारहवी की एक एक छात्राएं पुरे राज्य् में शीर्ष स्थान पर रहती है काफी प्रथम श्रेणी और अधिक्यर
द्वितीय श्रेणी में पास होकर स्कूल का सत प्रशितत परिणाम देती है।कस्बे के लोग जुलुस निकलते है और प्रिंसिपल की जय जय बोलते
है चारो तरफ प्रिंसिपल को प्रसंशा और सम्मान मिलता है ।जिस विद्यालय में सक्षम संपन्न वर्ग अपनी लड़कियो को पडना नहीं पसंद
करता वहाँ स्चूल में प्रवेश पाने के लिए भीड़ लंबी कतार प्रिंसिपल के प्रयास और चुनौतियों से सार्थक दृष्टि दृष्टिकोण सूझबूझ से
निपटने और सकारात्मक वातावरण निर्माण करने के प्रति संकल्प सयंम दक्षता के परिणाम था।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *