दर्द सहने की अब
आदत सी हो गई है।
प्यार किया है तो
इसे सहना पड़ेगा।
कांटो पर चलकर
मोहब्बत को पाना पड़ेगा।
बीत जायेंगे दुखभरे दिन
कांटो पर चलचल कर।
और मोहब्बत करने वाली को
समाने आना पड़ेगा।।
जब प्रेमी प्रेमिका थे
तब की बात अगल थी।
जिंदगी जीने का तबका
अंदाज भी अलग था।
अब पति पत्नी बनकर
दम्पतिक जीवन जी रहे है।
हर धार्मिक रीति रिवाज
और त्यौहारों को मान रहे है।
इसी श्रृंखला में पत्नी
करवाचौथ को समझ रही है।
और पति की लम्बी
आयु का व्रत रखकर।
पत्नी अपना धर्म
आज निभा रही है।
मानो सावित्री की याद
हमे दिला रही है।।
कितने तीज त्यौहार और व्रत
सिर्फ पत्नियाँ ही करती है।
और अपने परिवार का
सुरक्षा कवच स्वयं बनती है।
कभी ये सीता दुर्गा बनकर
अपना रूप दिखती है।
और रक्षा करने अपने घर की
पुरुषों जैसी बन जाती है।।
आज करवा चौथ के पवन
त्यौहार पर सभी पाठकों को
बधाई और शुभकामनाएं।