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अजीब समस्या है मेरे देश में..खेलना, डांस करना, गाना गाना..सब कुछ पढ़ाई के बाद। भारतीय पहलवानों के साथ ऐसी घटनाएं बच्चों व उनके अभिभावकों पर प्रभाव तो जरूर डालने वाली है वैसे भी देश मे ज्यादातर अभिभावकों की यही सोच है कि खेल कूद सिर्फ स्कूल तक ही खेलना चाहिए। खेल में करियर नहीं है परिणाम भी सामान्यतः प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय आयोजनों मे देखा जा सकता है। मुझे नहीं पता पहलवानों के आंदोलन में सच्चाई क्या है? यह सब न्यायालय तय करे किंतु इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर भारत की कुल जनसंख्या मे 48% भागेदरी महिलाओं की है तो उसमें अधिक से अधिक 4% महिलाएं ही होंगी जिनके साथ सम्पूर्ण जीवन काल में किसी भी प्रकार की उत्पीड़न ना हुआ हो और जब बात खेल कूद की हो तो यह आँकड़ा  और अधिक बढ़ जाता है। एक प्रोफ़ेसर के रूप में मैंने जितनी भी लड़कियों को पढ़ाया है उनमें से ज्यादातर ने इस बात पर सहमति जताई है उनके साथ कभी ना कभी परिवार के व्यक्ति, रिश्तेदार, गुरु अथवा कोच, सहयोगी या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा शोषण किया गया है। कई बच्चियों ने तो खेलना छोड़कर ब्यूटी पार्लर, सिलाई या कोई अन्य कोर्स सीखना प्रारंभ कर दिया है मेरे लिए थोड़ा काष्टकारी है क्योंकि मै भी नहीं खेल पाई, अजीब लगता है यह देख कर कि जो लड़की कबबड्डी में एंकल पकड़ती थी आज उसके हाथ मे पार्लर के ब्रश है और जब व्यक्ति अपने गुण के अनुसार काम नहीं करता तो कहीं ना कहीं सफल होने की संभावना कम हो जाती हैं। सचिन अगर फुटबॉल खेलते तो शायद इतने बड़े खिलाड़ी नहीं होते।

जितने भी खिलाड़ियों (पुरुष या महिला) से मेरी बात हुई है, सब ने इस बात पर सहमति जताई है कि गंदगी नीचे से लेकर ऊपर तक है। बड़े स्तर पर थोड़ा कम हो सकती है पर छोटे स्तर पर यह बहुत ज्यादा है ऐसे में अभिभावकों के द्वारा बच्चियों कि सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा बन जाता है। देश में पहले से ही शिक्षा व्यवस्था लाचार रही है, और ज्ञान को अंकों से या सरकारी नौकरी से ही मापा जाता है ऐसे मे वे अभिभावक वास्तव में बधाई के पात्र है जो अपने बच्चों की रुचि के अनुसार उन्हे कार्य करने देते है किन्तु यह आकड़ा बहुत कम है और जब इतने बड़े स्तर पर इस तरह की बात सामने आती है तो कही ना कही इसका नकारात्मक प्रभाव बच्चों और उनके अभिभावकों पर पड़ेगा।

ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां यह नहीं हो रहा? शिक्षा, व्यापार, चिकित्सा, रक्षा क्षेत्र या कहीं भी शोषण था और अभी भी हो रहा है। सुधार कैसे होना चाहिए या महत्त्वपूर्ण है, जरूरत है कि महिलाएं ही महिलाओं को समझें। खिलाड़ी महिला अपनी मां से भी कई बार ऐसी बातें नहीं कह पाती, कारण यह है कि उसका खेलना बंद कर दिया जाएगा। महिला ही महिला की ज्यादा बड़ी दुश्मन सदैव से रही है। पुरुषों मे जो दिखावा का भाव अब पर्याप्त रूप से दिख रहा है कि वे लड़कियों की इज्जत करते है वह सिर्फ दिखवा ना हो कर मन से होना चाहिए, राम के गाने कॉलर ट्यून मे लगा देने से या महाकाल गाड़ी मे लिखा लेने से कुछ नहीं होगा गुणों का अवतरण होना जरूरी है साथ ही हमें जरूरत है इस बात को समझने की कि महिलाओं का सशक्त होना आवश्यक है बुद्धि और बल दोनों से…

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