धन की वर्षा हुई बाजारों में ,
चेहरों पर खुशियों की लड़ियाँ जगमगाई।
धन से धन्य दिन-रात हुए जगमग,
धन तेरस ने शुरुआत करवाई ।
कुबेर ने घर आंगन खोला खजाना ,
धन-धान्य खुशियों की घर-घर लहराई ।
धन की वर्षा अभी थमी नहीँ थी ,
सज-श्रृंगार निखारने रूप-चतुर्दशी आई ।
नायिका संग-संग नायक भी सज गए ,
सजने-सजाने की वो कैसी चतुराई !
रूप-चतुर्दशी भी जब आ और निकल गई ,
घर आँगन को जन-जन बहुविध सजवाई ।
दीपों की लड़िया अब चहुँ ओर जगमग ,
जब मन हर्षाती दीपावली आई ।।
शुभ और लाभ को संग-संग लेकर ,
गणेश-सरस्वती संग, महालक्ष्मी माई ।
खुशियां सभी मिल जाये जग-जन को
यही दुआ बस हम करते है भाई ।।
बीत गया जब दिवस दीप तब ,
पूजन गोवर्धन की तयारी करवाई ।
गांव-गांव में पूज के गौ-वंश ,
कृषक-भाई संग गौमाता पूजवाई।
दीप दिवस मना लिया पिया- घर ,
लौट के दुल्हन अब पीहर आई ।
ससुराल से लेकर सास-ससुर दुआएं,
दिखी दुल्हन मन ही मन हर्षाई ।
पहुंच के पीहर ,लग मात-पिता हिय ,
बेटी को बचपन की यादें याद आई ।
भाई बसा हिय दौज दिवस तब,
कर के तिलक हर ली सब बलाई।
पांच दिवस का मना के दीप-उत्सव
देखो ये दुनियां लगे जगमगाई ।
अगले बरस की बाट निहारण को,
‘ अजस्र ‘ संग, सब चलते है भाई ।
बरसों बरस यों आती रहें खुशियां,
दुनियां रहे यूँ ही सदा हुलसाई ।
हर घर में जले खुशियों के दीपक ,
हर घर बाजे घन, सुरमयी शहनाई ।