alone (2)

तू माटी का एक पुतला है
तुझे माटी में ही मिलना है।
बस कट पुतली बनकर ही
तुझे ये मानव जीवन जीना है।
और मानव के इस पुतले को
इस खिलौने से खेलना है।
फिर कुछ बर्षो उपरांत
तुझे उसी माटी में मिलना है।।

जन्म लिया जिस घर में तूने।
उसका महौल बहुत अच्छा है।
न घर में कोई कलह आदि है।
पर दिलों में आदर भाव है।।

आज मन बहुत विचलित है।
न कोई गम है और न दुख है।
न ही सोच में कोई अंतर है।
फिर भी न जाने क्यों उदास है।।

बैठे बैठे एक दम से आज
ऐसा कुछ हो गया।
जिसे देख घर वाले हिल गये
पर मुझे समझ नहीं आया।
देखते ही देखते घरवाले
जो खुशी से खिलखिला रहे थे।
मुझे पसीना पसीना होते देख
वो सब घबराकर देखने लगे।।

आज सत्य का एहसास हो गया
की जीवन का कोई भरोसा नहीं।
कब किस वक्त और कहाँ पर
किसी का भी बुलवा आ जाये।
और ये माटी का खिलौना
कब इस माटी में मिल जाये।
और मिट्टी की कहानी
मिट्टी में ही मिल जाये।।

लोग अक्सर कहते रहते है
बैठकर अपनो के साथ।
जो आया है उसे जाना है
फिर क्यों इससे घबराना है।
कहने और सुनने में तो
बहुत अच्छा लगता है।
पर सच में मौत से तो
उन्हें भी डर लगता है।।

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