पावस आते मन ठहर, भीगे बदन मेरे।
समूचा माहौल खुला, याद पनपे तेरे।।
भीगा बदन बरसाएं, रिमझिम बारिश हुआ।
साजन चले आते हैं, जब बरस बता रहा।।
नन्हा पौध रोपण में, जमीन गीली हुईं।
अस्तित्व बचाने में, बरसात कहीं गई।।
अंकुरित होते डाली, वसन्त झूम उठनें।
बरखा की फुआर से, धरा भीग चलनें।।