(1) कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
शिक्षा से रहे ना कोई वंचित
संग सभी के व्यवहार उचित
रहे ना किसी से कोई कर्ष
कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
भले भरत को दिलवा दो सिंहासन
किंतु राम भी वन ना जायें सीता संग
सबको समान समझो सहर्ष
कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
मिलें पुत्रियों को उनके अधिकार
पर ना हों पुत्रवधुओं पर अत्याचार
ईर्ष्या रहित हो हर संघर्ष
कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
मनुष्य महान होता कर्मों से
देश श्रेष्ठ होता हर धर्मों से
हो सदैव भारत का उत्कर्ष
कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
(2) *कवि हो तुम*
गौर से देखा उसने मुझे और कहा
लगता है कवि हो तुम
नश्तर सी चुभती हैं तुम्हारी बातें
लेकिन सही हो तुम
कहते हो कि सुकून है मुझे
पर रुह लगती तुम्हारी प्यासी है
तेरी मुस्कुराहटों में भी छिपी हुई
एक गहरी उदासी है
तुम्हारी खामोशी में भी
सुनाई देता है एक अंजाना शोर
एक तलाश दिखती है तुम्हारी आँखों में
आखिर किसे ढूंढ़ती हैं ये चारों ओर
(3) *प्रेम दिवस*
चक्षुओं में मदिरा सी मदहोशी
मुख पर कुसुम सी कोमलता
तरूणाई जैसे उफनती तरंगिणी
उर में मिलन की व्याकुलता
जवां जिस्म की भीनी खुशबू
कमरे का एकांत वातावरण
प्रेम-पुलक होने लगा अंगों में
जब हुआ परस्पर प्रेमालिंगन
डूब गया तन प्रेम-पयोधि में
तीव्र हो उठा हृदय स्पंदन
अंकित है स्मृति पटल पर
प्रेम दिवस पर प्रथम मिलन