अन्तर्मन अंतर्द्वंद,
अंतर्द्वंद क्षितिज-मन।
सूर्य-किरण ठिठुर ,
हलचल-मन कठोर।
क्षण-क्षण आशा,
की दृश्य-विभोर।
व्याकुल-दृष्टि,
नेत्र-रिक्त।
ग्रीष्म-शीत-वर्षा,
ग्रीष्म-शीत-वर्षा,
वर्षा-वर्षा-वर्षा।
हर क्षण समझा,
त्रुटि वही फिर दोहरा।
क्षमा-याचना….. क्षमा,
ना श्रुति ना शब्द।
ग्रीष्म-शीत-वर्षा
ये नहीं मौसमी वर्षा,
अब कुछ नहीं कहना।