दीपक समान जलकर
रोशनी जग में फैलाए।
सच और झूठ बीच अन्तर का बोध
कराके सही, गलत का फ़र्क
हमें सिखलाते।
कभी संभाला
तो कभी डांट लगाई
माता-पिता सी, जिन्होंने।
नए ज्ञान से अवगत कराके हमें
सपनों को सच करने लायक बनाया।
ख़ुद तपते रहे धूप में
शिष्यों को छाया देते रहे।
न कोई अमीर-ग़रीब उनके लिए
जाति-पाति के बन्धन से मुक्त।
देते समान ज्ञान
उनकी दृष्टि में सब एक समान।
बंद हो जाते जब सारे रास्ते
उम्मीद का दिया जलाते।
कुम्हार कच्ची मिट्टी को तराश कर बर्तन बनाता
शिष्यों के गुणों को तलाश
उसे बनाते आम से ख़ास आप।
न किसी वाहवाही का लालच
सदा हमारी उपलब्धियों में खुश होते।
यह बात भला मैं, कैसे भूल जाऊं
जो कुछ भी हूँ आज,
गुरुओं की बदौलत हूँ।