सरस-सपन-सावन सरसाया।
तन-मन उमंग और आनंद छाया।
‘अवनि’ ने ओढ़ी हरियाली,
‘नभ’ रिमझिम वर्षा ले आया।
पुरवाई की शीतल ठंडक,
सूर्यताप की तेजी, मंदक।
पवन सरसती सुर में गाती,
सुर-सावन-मल्हार सुनाती।
बागों में बहारों का मेला,
पतझड़ बाद मौसम अलबेला।
‘शिव-भोले’ की भक्ति भूषित,
कावड़ यात्रा चली प्रफुल्लित।
युवतियां ‘शिव-रूपक’ को चाहती,
इसके लिए वो ‘उमा’ मनाती।
‘सोमवार’ सावन के प्यारे,
शिव-भक्तों के बने सहारे।
सृष्टि फूलीत है सावन में,
सब जीवों के ‘सुख-जीवन’ में।
जंगल में मंगल मन-मोजें,
घोर-व्यस्तता में शान्ति खोजें।
मनुज प्रकृति निकट है आए,
गोद मां(प्रकृति) की है सुखद-सहाय।
मोर-पपीहा-कोयल गाए,
दूर परदेश से साजन आए।
साजन , सावन में और भी प्यारे,
वर्षा संग-संग प्रेम-फुवारें।
प्रेम-भक्ति का मिलन अनोखा,
रस-स्वाद से बढ़कर चोखा।
बरसों बरस सावन यूं आए,
*अजस्र-मन* यही हूंक उठाए।