हो पिया जब परदेश में
सावन भी सूखा लगता है
सजनी का हर श्रृंगार भी
पी बिन अधूरा लगता है
बारिश की हरेक बूंद भी
तब आग ही बन जाती है
सावन की सुहानी रातों में
जब याद पिया की आती है
व्याकुल रहता है मन
मिलन को तरस जाता है
बिना साजन सारा सावन
आंखों से ही बरस जाता है