gayan

छोड़ो शर्म को ,मुखर बनो तुम ,
बोलो हृदय के सब उद्गार ।

आसमान भी लगे फिर छोटा ,
उन्मुक्त उड़ोगे जब पंख परवाज ।

पनडुब्बे से तुम बन जाओ ।
अथाह सागर में गोत लगाओ ।

मोती ज्ञान के अतुल खजाना ,
सृजन करो ‘अजस्र ‘ श्रृंगार ।

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