बात कुछ साल पुरानी है। गुजरात के आगे के स्टेशन से एक स्त्री दो बच्चो को गोद में लिए चढ़ी । कम उम्र की जान पढ़ रही थी। जिस बोगी में थे हम वह भी उसी बोगी में बैठी। उसके पास मात्र एक झोला था , दिखने में वह साधारण परिवार की जान पड़ रही थी। गोदी में दो सम् – वयस्क
लगभग दो साल की अवस्था के थे। दोनों ही एक ही रंग परिधान में थे। मुखाकृति दोनों की भिन्न – भिन्न थी। महिला मेरे सामने की सीट पर बैठी थी। उसने बॉटल से दूध दोनों बच्चो की पिलाया। स्टेशन से फल खरीदकर भी दोनों को खिलाए। थोड़ी देर के बाद एक बच्चा सो गया , जिसे उसने अपने पास सुलाया और दूसरा बच्चा उसकी गोद में बैठा जग रहा था। डिब्बे में भीड़ नहीं थी। मुझे कुछ जिज्ञासा हुई । कम उम्र की लड़की जान पढ़ रही थी वह और उसके साथ दो बच्चे । मैने पूछा ,’ बहनजी ये दोनों जुड़वा बच्चे है ? इतनी कम उम्र में!’ महिला ने कहा ‘ नहीं ‘,
वह मेरी जिज्ञासा समझकर वह पुनः बोली ‘ एक बच्चा मेरा है और एक पड़ोसी का । बच्चा पैदा होने के बाद वह बेचारी मर गई । घर में दूसरी स्त्री पालन करने वाली नहीं थी । अतः मैने बच्चे (गोद में जो जाग रहा था ) – को अपने पास रख लिया । में अपने बच्चे के समान ही उसका ध्यान रखती हूं । लोग यही समझते हैं कि दोनों बच्चे इसी के है।” इतना कहकर वह मोंन हो गई और बच्चे को सुलाने लगी। हम बहुत देर तक उस ममतामय मां की वात्सल्यता , उदारता को देख कर विचार कर रहे थे कि । वह महिला अपने काम से कहीं जा रही थी। वह महिला कब अपने गंतव्य स्टेशन पर उतर गई और कब चली गई पता नहीं चला। धन्य थी वह ममतामय मां और वह नारी। नारी के अनेकों रूप देखे जा सकते है।