अस्पताल में पहुंचते ही मोहन एक हाथ से गले में पड़े गमझे को निकल कर मुँह पोछता है, लेकिन अपने 10 माह के बेटे माधव को नीचे उतारे बिना ही नर्स से बड़ी ही जल्दबाजी में पूछता है “मैडम डाक्टर साहब नहीं है क्या?’ नर्स ने फेस मास्क को सही करते हुए बोला “कोरोना महामारी के संक्रमण के कारण सारे डॉक्टर उसकी व्यवस्था में लगे है।”
मोहन ने बड़ी ही विनम्रता से कहा “तो क्या कोरोना के अलावा कोई और बीमारी इंसान को नहीं हो सकती हैं क्या ?” नर्स कंधा उचकाते हुए बोली “आप इंतजार कर सकते है” और अपना मोबाइल उठा कर वहाँ से चली जाती है।
मोहन माधव की तरफ थोड़ी देर तक देखता रहा कि कितने सालों की पूजा पाठ के बाद तो माधव का जन्म हुआ था,
और फिर मोहन और उसकी पत्नी सीमा ने बड़े ही जतन से माधव को पाला था, जब तक मोहन का रिक्शा चलता रहा वो हर दिन ही माधव के लिए कुछ न कुछ लेकर आता था, पर जाने कहा से ये कोरोना जैसी बीमारी फैली कि पूरा का पूरा शहर ही बंद हो गया। रिक्शा चलना तो दूर कोई इंसान तक बाहर नहीं निकलता, और फिर उसकी बचत के पैसे भी माधव की बीमारी के चक्कर में पड़ोस के डाक्टर साहब को देने पड़े,और अब उनके खाने के भी लाले पड़ गए है फिर उनका गांव शहर से दूर भी है, तो कोई ऐसा समाजसेवी भी नहीं आता कि कुछ खाने को ही दे कर फोटो खींचा लेता लेकिन वो सब तो शहर वालो के चोचले है। बैठे-बैठे वो ये सब सोच ही रहा था कि अचानक माधव जोर जोर से सांस लेने लगता है,मोहन उसे गोद मे रख बार-बार चिल्लाता है “बेटा माधव…बेटा माधव …डॉक्टर साहब आ ही रहे होंगे तू ठीक हो जाएगा रे।” अचानक मोहन महसूस करता है कि माधव की सांसें थम गई है,वो ज़ोर से चिल्ला कर रोता है, नर्स अपने कानों में लगे ईयर फ़ोन को निकालते हुए आती है,माधव को चेक करती है,फिरबड़े ही शांत भाव से कहती है “ये बच्चा अब नही रहा।” उसका शांत भाव मोहन को बहुत ज्यादा चुभ गया,ज़ोर से चिल्ला कर मोहन कहता है “थोड़ी देर पहले देख लेती तो कुछ न होता कैसे इंसान है आप लोग।”
थोड़ी देर रोने के बाद मोहन को सीमा का ख्याल आता है, वो आंसू पोछते हुए माधव को गोद मे उठाकर अपने गांव की ओर निकल पड़ता है,रास्ते मे देखता है कि एक गाड़ी से पूड़ी सब्जी खीर बांटी जा रही थी, वो भी लाइन में लगकर पूड़ी सब्जी खीर लेता है और गांव की ओर निकल पड़ता है, उधर सीमा दोपहर हो जाने के कारण घर के सारे बर्तन खंगाल कर देखती है शायद कही कुछ खाने को मिल जाए, सारे बर्तनों में ढूंढने के बाद उसे एक बर्तन में लगभग 2- 3 रोटी का आटा मिल गया, जिसमें आधे से अधिक हिस्से में कीड़े थे,सीमा ने बड़े ही प्यार से 4 छोटी छोटी रोटी बनाई और मोहन के आने का इंतजार करने लगी, अचानक देखती है कि मोहन,माधव को लिए आ रहा है, वह दौड़ कर पानी लेकर बाहर आती है, पर मोहन माधव को बाहर जमीन में ही रख देता है, सीमा बड़े ही अचम्भे से कहती है “ये क्या, आप माधव को बाहर ऐसे क्यों लिटा दिए” लेकिन जैसे ही सीमा की नजर मोहन के चेहरे में पड़ती है, सीमा का चेहरा शून्य हो जाता है, अरे! ये क्या उसके जिगर का टुकड़ा सच मे सो गया क्या? “मेरा माधव अब नही उठेगा?” सीमा अपनी भावनाओं को एक साथ समेटे वही पर गिर जाती है, मोहन उसे उठाता है पानी पिलाता है और दोनों मिलकर बहुत देर तक रोते रहते है,एक असहनीय पीड़ा का सामना दोनों ही करते है,फिर मोहन सीमा को समझाता है और दोनों ही मिलकर माधव को मिट्टी देते है,नहाकर अंदर आते है, और आज दोनों ने ही चार दिन बाद सब्जी पूड़ी खीर जो मोहन के द्वारा लाई गई थी भर पेट खाई है।

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