rikshawala

शहर के चौक-चौराहे पर इक्के-दुक्के ही रिक्शावाले नजर आते हैं। शायद आज कल आदमी रिक्शा की सवारी करना नहीं चाहते हैं या ई-रिक्शा के कारण। आखिर वजह जो भी हो। रिक्शावाला पूस के ढलते सूरज को देख चिंतित मुद्रा में सोच रहा है, ‘‘अब शाम होने को है। लेकिन डेढ़ सौ रुपया भी जेब में नहीं आया है, जो रिक्शा मालिक को देना है। साहूकार ने पत्नी को यदि उधार में अनाज न दिया हो तो बीमार पुत्र भूख से तड़प रहा होगा। और दवा भी लेकर जाना है। हे प्रभु! मैं क्या करूँ?……….’’
तभी एक ऑटो से एक पुरुष और एक महिला उतरकर पुकारते हैं, ‘‘ऐ रिक्शा।’’
‘‘हाँ, हाँ, कहाँ चलना है सर?’’ रिक्शावाला कहता है।
‘‘अरे, मुझे नहीं मैडम को जरा नयी कॉलोनी में छोड़ दो।’’ पुरुष कहता है।
‘‘हाँ, हाँ, चलिए मैडम, बैठिए।’’ कहता रिक्शा घुमा लेता है।
‘‘कितना लोगे?’’ महिला कहती है।
‘‘मैडम, नयी कॉलोनी का जो भाड़ा है, वही लगेगा। आपसे ज्यादा थोड़ी लूँगा।’’ रिक्शावाला
‘‘अरे, तुम लोगों का क्या भरोसा है? ले जाने के बाद इतना दो, उतना दो बोलोगे। तब न, न, न।’’ महिला
‘‘ऐसे कैसे बोलूँगा? एक दिन की बात नहीं है।’’ रिक्शावाला
‘‘अच्छा ठीक है, भाड़ा कितना है?’’ पुरुष कहता है।
‘‘चालीस रुपया सर।’’ रिक्शावाला
‘‘अरे! नयी कॉलोनी का भाड़ा तो बीस रुपया है। कैसे तुम चालीस रुपया कह रहे हो?’’ पुरुष
‘‘मैंने कहा न, ये लोग ले जाने के बाद ऐसे ही नौटंकी करते हैं। बीस रुपया रिक्शा और दस रुपया ई-रिक्शा का भाड़ा है।’’ महिला
‘‘यदि मैं गलत भाड़ा बताया हूँ तो किसी दूसरे रिक्शावाला से पूछ लीजिए।’’ रिक्शावाला
‘‘यदि तुमको चलना है तो बीस रुपया दूंगी। चलो! वरना आराम करो!’’ महिला
‘‘कम से कम तीस रुपया दे देना मैम साहिब। मेरा बेटा बीमार है। दवा लेकर भी जाना है।’’ रिक्शावाला
‘‘अरे! जा न भाई। मैडम बहुत दयालु है। तीस तो क्या चालीस ही दे देंगी?’’ पुरुष
महिला रिक्शा में बैठ जाती है। रिक्शा को दस कदम आगे लेकर गया नहीं है कि महिला कहती है, ‘‘अरे! रिक्शा तेज चलाओ। मेरी बेटी डांस क्लास से आकर बाहर इंतजार कर रही होगी।’’
‘‘हाँ मैम साहिब।’’ कहता रिक्शा की गति तेज की। अचानक एक कार तेज गति से आती है। सड़क संकीर्ण है। पर कारवाला पीछे से बार-बार हर्न बजाता हुआ कार आगे निकालने लगा। तभी रिक्शा से कार स्क्रेच हो जाता है। कारवाला गाली देने लगा, ‘‘अंधा! दिखता नहीं है। रिक्शा चलाने का ढंग नहीं है और शहर में रिक्शा चलाता है। कार के आगे खुद आकर टकरा जाओगे। फिर बाद में मरने का नौटंकी करोगे।’’
‘‘यू डेथ! तुम तो मरोगे ही साथ में मुझे भी मराओगे।’’ महिला
‘‘मैं तो अपने साइड में खड़ा था। जहाँ दो बाइक पार नहीं हो सकता है, वहाँ कार पार करेगा तो क्या होगा?’’ रिक्शावाला
‘‘उं’’ महिला
रिक्शावाला, महिला को नयी कॉलोनी में उतार देता है। महिला चालीस रुपये की जगह बीस रुपया भी नहीं। बल्कि दस रुपया हाथ में थमाकर कहती है, ‘‘प्रभु का लाख-लाख शुकर है। वरना तू तो आज मार ही डाला था। मरमुखड़!’’
‘‘आप कैसी बात कर रही हैं, मैम साहिब। मैं आज से नहीं बीस साल से रिक्शा चला रहा हूँ। और ये क्या दे रही हैं। दस रुपया।’’ रिक्शावाला
‘‘लेना है तो लो वरना ये भी नहीं मिलेगा।’’
‘‘आपने जो कहा था। उतना तो कम से कम दे दीजिए।’’
‘‘अरे! मैंने कहा न!’’ कहती दस का सिक्का रिक्शावाला की ओर फेंककर चली जाती है। रिक्शावाला दस का सिक्का जेब में रख लेता है। सूरज अस्त हो चुका। रिक्शा मालिक को रिक्शा जमा करने का समय आ चुका है। निराश मन में मालिक के पास चला जाता है। रिक्शा लाइन में खड़ा कर देता है। फिर रिक्शा मालिक से आग्रह पूर्वक कहता है, ‘‘मालिक आज का पैसा कल दे दूँगा। आज मात्र डेढ़ सौ रुपया ही कमा सका हूँ। मेरा बेटा बीमार है?…..।’’
‘‘नहीं, नहीं, ऐसा नहीं होगा। आज का पैसा आज ही जमा करना होगा।’’ रिक्शा मालिक
‘‘मालिक! मुझ पर दया कीजिए।’’ कहता हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता है। किंतु रिक्शा मालिक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पैसा अदा करने पर मजबूर हो गया। पैसा देकर घर की राह ली। पर कदम घर की ओर बढ़ नहीं रहे। किसी तरह रिक्शा मालिक के सामने से रिक्शा के पास पहुँचा और रिक्शा में सिर झुकाकर बैठ गया। मन में बीमार बेटा के प्रति संवेदना बवंडर की तरह उठा। फिर आँखों से आँसू की बाढ़ उमड़ पड़ी। सुबह जब रिक्शा मालिक आता है, तब देखा कोई रिक्शा पर बैठा है। दूर से आवाज लगायी, ‘‘आज मेरे से पहले कौन आ गया है।’’
वह उत्तर नहीं दिया। जब मालिक सामने पहुँचा। तब देखा, कल शाम को जो रिक्शावाला पैसा नहीं देना चाहता था। उसका मृत शरीर रिक्शा पर पड़ा है।

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