सुबह से अविनाश कश्यप के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करता पस्त हो गया। दोपहर हो चला पर कोई निर्णय लेने में असफल रहा। अंत में सिर पर हाथ रख कर बैठ जाता है। चित्रगुप्त को परेशान में देखकर यमराज कहता है, “चित्रगुप्त जी! आपको क्या हुआ? बहुत चिंतित लग रहे हैं।”
“क्या बताऊँ महाराज?” चित्रगुप्त
“बताओ न!”
“धरती लोक में आये दिन किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उन किसानों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करता तंग आ चुका हूँ।”
“कैसे?”
“मृत्यु से बीस-तीस-चालीस वर्ष पहले ही आर्थिक तंगी में आकर आत्महत्या कर रहे हैं।”
“उसमें क्या समस्या है? जिनको धरती लोक में रहने की इच्छा नहीं करता है। वह आत्महत्या कर लेता है।”
“महाराज! समस्या ये नहीं है।”
“फिर क्या है?”
“आज सुबह-सुबह आपके यमदूत ने एक अट्ठाईस वर्षीय युवक अविनाश कष्यप के जीव को लेकर आया है।”
“इसमें क्या परेशानी है? जिसकी मृत्यु होती है, उसका जीव को यमलोक लाना ही तो मेरे यमदूतों का काम है। वह तो अपना काम किया है।”
“नहीं महाराज! बात ये नहीं है।”
“धरती लोक के व्यक्ति की तरह ज्यादा पहेली मत बूझाओ। सीधे-सीधे बताओ न! बात क्या है?”
“बात ये है कि अविनाश कष्यप की आयु अस्सी वर्ष है। वह अट्ठाईस वर्ष में ही आत्महत्या कर लिया।”
“पाप का घड़ा भर गया होगा। जिसके कारण अस्सी वर्ष से घटकर अट्ठाईस वर्ष हो गया। ठीक से देखो!”
“नहीं महाराज! अविनाश कष्यप ने चार बार गंगा स्नान कर चुका है। छोटा-मोटा जो पाप किया था। वह गंगा स्नान में धूल चूका है।”
“ऐसा कैसे हो सकता है?”
“ऐसा ही है।”
“फिर एक बार ठीक से देखो!”
“मैं सुबह से पचासों बार देख चुका हूँ महाराज।।”
“तब तो गंभीर समस्या है।”
“महाराज! कुछ वर्षों से ऐसा ही हो रहा है। मैं इन गरीब किसानों का लेखा-जोखा करता थक चुका हूँ। ऐसा ही रहा तो मैं एक दिन पागल हो जाऊँगा।”
“धरती लोक जाकर मुझे देखना ही पड़ेगा। आखिर किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं?”
“पता करना ही होगा महाराज।”
“मैं अभी धरती लोक जाता हूँ। अविनाश कष्यप की आत्महत्या के मूल कारण को पता करता हूँ। फिर विचार करते हैं।”
“आप कहें तो मैं भी साथ चलूँ।”
“ठीक है, चलो!”
यमराज और चित्रगुप्त धरती लोक पर आकर साधु वेश धारण करके सीधे अविनाश कष्यप के घर पहुँच जाते हैं। यमराज एक व्यक्ति से पूछता है, “अविनाश कष्यप ने आत्महत्या क्यों किया? आप कुछ बता सकते हैं।”
“क्यों नहीं साधु बाबा?”
“बताओ!”
“अविनाश पढ़ा-लिखा युवक था। सरकार की नीति के कारण नौकरी नहीं मिली। इधर पिता के देहांत के बाद परिवार का भार कंधे पर आ गया। दो बहन और विधवा माँ। दोनों बहन की शादी की चिंता सताने लगी। पिता एक एकड़ जमीन पर खेती करते थे। उसमें केवल जैसे-तैसे घर चलता था। इसीलिए।”
“इसीलिए क्या? आगे बताओ!”
“अविनाश बैंक से सात लाख लोन लिया था।”
“फिर”
“फिर पिता की आठ एकड़ बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने, बोरिंग और आधुनिक तकनीक से खेती करने के उपकरण लगाने में पाँच-छह लाख खर्च हो गया।”
“आगे क्या हुआ?”
“उस भूमि पर खेती करने लगा। प्रतिदिन खेत में पच्चीस-तीस मजदूर काम करने लगे। दो-चार बार अच्छी फसल भी हुई थी। हम सभी के लिए अविनाश प्रेरणादायक बन गया था। लेकिन”
“लेकिन क्या?”
“लेकिन यही कि कभी अच्छी फसल हुई तो बाजार में रेट नहीं मिला। ऊपर से व्यापारी की मनमानी अलग ही। कभी बेमौसम बारिश-ओले के कारण फसल नष्ट हो जाती है। सरकार कभी हमारी हुई ही नहीं।”
“लोन अदा किया था?”
“दो-चार बार अच्छी फसल हुई थी, उसी समय शायद आधा लोन अदा किया था। पर”
“पर क्या?”
“पर यही कि लगातार दो-तीन बार फसल बर्बाद होने के बाद अविनाश पूरा टूट गया था। लेकिन हार नहीं माना था।”
“हार नहीं माना था तो आत्महत्या क्यों किया?”
“पुनः बैंक से जमीन के नाम से तीन लाख लोन ले लिया। आठ एकड़ जमीन पर तरबूज की खेती की। लेकिन तरबूज में ठीक फल लगना शुरू हुआ था और मरने लगा। एक सप्ताह के अंदर सब मर गया।”
“दवा का प्रयोग नहीं किया। आज तो बाजार में अनेक किस्म की दवा आ गयी है।”
“प्रतिदिन दस मजदूर केवल दवा का छिड़काव ही कर रहे थे। पर किस्मत का खेल देखिए। सारा-का-सारा तरबूज मर गया। अविनाश को लगने लगा कि अब लोन अदा कर पाना असम्भव है। शायद इसलिए फाँसी लगाकर आत्महत्या कर लिया।”
“अच्छा! ये बात है।”
“हाँ, साधु महाराज।”
“अविनाश कैसा आदमी था?”
“मतलब!”
“मतलब यही कि किसी आदमी को परेशान तो नहीं करता था।”
“राम, राम, कभी नहीं। वह दिल का बहुत अच्छा था।”
“हो सकता है, किसी लड़की के साथ चक्कर हो।”
“नहीं, नहीं, महाराज। मेरी बात पर आपको विश्वास नहीं हो रही है तो गाँव के दो-चार आदमी से भी पूछ सकते हैं।”
“अच्छा ठीक है। लेकिन आत्महत्या कैसे किया?”
“स्टोर रूम में फाँसी लगाकर।”
“वह स्टोर रूम कहाँ है। हमे लेकर चलोगे।”
“हाँ, हाँ चलिए।” कहता पड़ोस का आदमी आगे-आगे चलने लगा। पीछे-पीछे यमराज और चित्रगुप्त खुसुरफुसुर करते जा रहे हैं। चित्रगुप्त कहता है, “महाराज स्टोर रूम में मेरी चिंता का निदान मिल सकता है।”
“देखते हैं, यदि कुछ मिल जाता है तो।”
“और कुछ भी नहीं मिला तो।”
“चलो न पहले! फिर देखते हैं।”
पड़ोस का आदमी हाथ से इशारे करते हुए कहता है, “साधु महाराज, ये रहा आठ एकड़ भूमि। जो पिछले दस सालों से खेती करता था। पहले यह बंजर भूमि थी। जिसे अविनाश ने खेती के लायक बनाया। ये रहा स्टोर रूम, जहाँ फाँसी लगाकर आत्महत्या की।”
“अच्छा।” कहता यमराज और चित्रगुप्त स्टोर रूम के अंदर प्रवेश करते हैं। नजर इधर-उधर घुमाते हैं। पर कुछ नहीं मिला।
“अच्छा ठीक है।” कहता यमराज और चित्रगुप्त वहाँ से चल पड़े।
“महाराज! अब क्या करें?” चित्रगुप्त
“चित्रगुप्त जी आप चिंतित ना हों। किसानों की आत्महत्या का कारण जाने बिना हम धरती लोक से वापस नहीं जायेंगे।” यमराज
“लेकिन अब कहाँ चले महाराज?” चित्रगुप्त
“सबसे पहले सब्जी मंडी चलते हैं। वहाँ देखते हैं कि किसानों की क्या स्थिति है?”
“ठीक है, चलिए महाराज।”
दोनों सब्जी मंडी पहुँच जाते हैं। जहाँ व्यापारी किसान से सब्जी खरीद रहे हैं। वहाँ खड़ा होकर देख रहे हैं। कुछ देर के बाद चित्रगुप्त कहता है, “महाराज देखिए! इन व्यापारियों को सत्तावन किलो सब्जी को पचास किलो बोलता है। पचास किलो का ग्यारह रुपये प्रतिकिलो के रेट से पाँच सौ पचास रुपये होता है। किंतु किसान के हाथ में पाँच सौ का नोट थमा देता है। किसान के पचास रुपये मांगने से व्यापारी चिल्लाता हुआ कहता है। जा, जा, चुन-चुनकर लेने से आधा खराब निकल जायेगा।”
“आप तो पहले ही सात किलो माइनस किये हैं।” किसान
“वह तो कांटा तराजू का है। जो पचास किलो में सात किलो माइनस किया जाता है।”
“ये गलत है। पहले पचास किलो में तीन किलो माइनस किया जाता था।”
“पहले होता था। अब नहीं। मेरा दिमाग क्यों खा रहा है? जाओ! भागो!” चिल्लाकर कहा।
“चित्रगुप्त! तुम्हारी चिंता का कारण पता चल रहा है न!” यमराज
“कैसे महाराज?” चित्रगुप्त
“नहीं समझा।”
“उँहू।”
“नोट करो! इन व्यापारियों का नाम। ये सब हैं किसानों की आत्महत्या करने की मूल वजह।”
“अच्छा ठीक है।”
“वहाँ देखो! उस मोटा आदमी को।”
“ठीक है महाराज।”
देखने से लगता है कि वह मोटा आदमी कोई बिजनेसमैन होगा। वह एक किसान से सब्जी तौलवा लिया है। पैसा देने के समय आना-कानी करने लगा है। किसान के अनुसार तीन सौ चालीस रुपया हुआ है। लेकिन वह आदमी केवल तीन सौ रुपया देता है। किसान के नहीं लेने पर। वह आदमी किसान के तराजू में फेंककर चला जाता है। ऐसा करते एक नहीं अनेक आदमी को देखते हैं।
“इन सभी का नाम नोट करो!” यमराज
“जी महाराज!” चित्रगुप्त
“अब चलो सरकारी दफ्तर।”
“चलिए महाराज।”
सरकारी दफ्तर के बाहर किसान सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भटक रहे हैं। दलाल गरीब किसानों से प्रधानमंत्री इंदिरा आवास, बोरिंग, कुआँ, तालाब और बीज-खाद आदि का लाभ दिलाने के नाम पर रिश्वत ले रहे हैं। ऑफिसर भी दलालों से लेते हैं। ऑफिसर नेता-मंत्री का हिस्सा भेजवा देते हैं। ऑफिसर किसानों का बीज, अनाज और खाद को सीधे बिजनेसमैन के हाथों बेच देते हैं। फिर सरकारी अस्पताल चले जाते हैं। जहाँ डॉक्टर मौजूद ही नहीं हैं। डाॅक्टर की जगह नर्स और कंपाउंडर इलाज कर रहे हैं। सरकारी डॉक्टर अपने क्लिनिक में गरीब किसान मजदूर को जाँच और दवा के नाम से लूट रहे हैं। यमराज के आदेश पर चित्रगुप्त इन सभी का नाम नोट करने के उपरांत कहा, “अब इन लोगों का क्या करें महाराज?”
“पहले देखो, इन लोगों की आयु कितनी है।” यमराज
“जी महाराज!” कहता इन सभी की आयु की गन्ना करने लगा। फिर बोला, “सभी का लगभग अस्सी से ऊपर है।”
“ध्यान से मेरी बात सुनो ।”
“हाँ, बोलिए महाराज!”
“इन सभी की आयु अस्सी वर्ष से कम करके पचास से साठ के बीच में कर दो। फिर इन्हें नरक में भेजकर इतना दंड दो कि सात जन्मों तक गरीब किसान-मजदूर को सताने से पहले सौ बार सोचे।”
“ऐसा करने से क्या होगा महाराज?”
“ऐसा करने से तुम्हारी चिंता कम हो जायेगी।”
“कैसे महाराज?”
“चित्रगुप्त! ये लोग धरती लोक पर जितना दिन रहेगा। उतना ज्यादा किसान आत्महत्या करेगा। फिर तुम्हारी चिंता भी बढ़ेगी।”
“नहीं, नहीं, मुझे चिंता से मुक्त होना है। मैं तत्काल इन सभी की आयु कम करता हूँ। इतना ही नहीं, इन पर विशेष ध्यान रखूँगा। जो ज्यादा ही अत्याचार करेगा। उसे यथाषीघ्र मृत्यु दे दूँगा। फिर नरक में इतना दंड दिलाऊँगा कि सात जन्मों तक याद रखेगा।”
“मतलब अब समझा न!”
“हाँ महाराज। अब सिर का बोझ उतर गया।”
“चिंता मुक्त।”
“हाँ महाराज।”
“अब चलें यमलोक।”
“हाँ महाराज, चलिए।”
दोनों यमलोक की ओर प्रस्थान किये………………………….।