हिंदी सिनेमा में एक संवेदनशील गीतकार के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले महान गीतकार शैलेन्द्र जी का आज (30 अगस्त,1923-14 दिसंबर 1966) जन्मदिवस है। इनका पूरा नाम “शंकरदास केसरीलाल ‘शैलेन्द्र’ था’। ‘होठों पर सच्चाई रहती है, दिल में सफाई रहती है’, ‘मेरा जूता है जापानी,’ ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ जैसी दर्जनों यादगार फ़िल्मी गीतों के जनक शैलेंद्र जी ने महान अभिनेता और फ़िल्म निर्माता राज कपूर के साथ बहुत काम किया। साहित्यिक कृति पर बनीं बेहतरीन फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के वे निर्माता भी रहे। गीतकार शैलेंद्र, अभिनेता राजकपूर, गायक मुकेश और संगीतकार शंकर-जयकिशन की चौकड़ी ने हिन्दी सिनेमा में अपनी विशेष पहचान बनाई है। जब भी इन्होंने एक साथ काम किया फिल्म और उसके गाने काफी हिट साबित हुए। इनके द्वारा लिखा गीत ‘मेरा जूता है जापानी’ काफी लोकप्रिय हुआ। हाल ही में 2016 में आई अँग्रेजी भाषा की फिल्म डेडपूल में इसे दिखायागया था।

हिन्दी सिनेमा के मशहूर गीतकार गुलज़ार ने इनके बारे में कहा था “बिना शक शंकर शैलेन्द्र को हिन्दी सिनेमा का आज तक का सबसे बड़ा गीतकार कहा जा सकता है। उनके गीतों को खुरच कर देखें तो आपको सतह के नीचे दबे नए अर्थ प्राप्त होंगे। उनके एक ही गीत में न जाने कितने गहरे अर्थ छिपे होते थे”।

शैलेन्द्र हिन्दी फिल्मों के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों के लिए भी बहुत से गीत लिखे। उन्हीं में से कुछ लोकप्रिय गीत हमारे सामने हैं, जो आज भी लोगों के दिलों दिमाग पर छाए हुए हैं। उनके बोल लोगों के जुबां पर आज भी वैसे ही याद है-
मेरा जूता है जापानी (श्री 420)
होठों पे सच्चाई रहती है (जिस देश में गंगा बहती है)
आवारा हूँ (आवारा )
गाता रहे मेरा दिल (गाईड)
पिया तोसे नैना लागे रे (गाईड)
क्या से क्या हो गया (गाईड)
हर दिल जो प्यार करेगा (संगम)
दोस्त दोस्त ना रहा (संगम)
सब कुछ सीखा हमने (अनाडी)
किसी की मुस्कराहटों पे (अनाडी)
सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है (तीसरी कसम)
दुनिया बनाने वाले (तीसरी कसम)
चलत मुसाफिर (तीसरी कसम)
प्यार हुआ इकरार हुआ है (श्री 420)
मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है (बूटपालिश )

बीबीसी ने भी शैलेंद्र के 10 मशहूर गाने की एक लिस्ट बनाई जो निम्न है-


इसके अलावा उन्होनें कई कविताओं व अन्य गीत भी लिखे जिसमें मुख्य है –
* तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!

बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर! 
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!…
तू ज़िन्दा है

और

* पूछ रहे हो क्या अभाव है
तन है केवल प्राण कहाँ है ?

डूबा-डूबा सा अन्तर है
यह बिखरी-सी भाव लहर है ,
अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन
मेरे जीवन के गान कहाँ हैं ?

मेरी अभिलाषाएँ अनगिन
पूरी होंगी ? यही है कठिन
जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ
ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ?

लाख परायों से परिचित है
मेल-मोहब्बत का अभिनय है,
जिनके बिन जग सूना सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं ?
……
आदि कई अन्य रचनाएं हैं।

हिन्दी सिनेमा में आम आदमी के दर्द और उसकी आवाज को बिलकुल सरल सहज भाषा में बयां करने वाले महान गीतकार शैलेंद्र हमेशा आम आदमी की आवाज के लिए याद किए जायेंगे।

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