गर ज़िंदा रहे यारो,तो कल की सहर देखेंगे
रस्ते से हटे कांटे,तो अपनी भी डगर देखेंगे
डर डर के जी रहे हैं बंद कमरों में आजकल,
गर बदलेगा समां,तो आगे का सफ़र देखेंगे
जाने आ जाएँ कब गिरफ़्त में करोना की हम,
बच गए तो मेहरवानी,वरना तो कहर देखेंगे
बढ़ रहीं शमशान में धुएं की लकीरें रोज़ ही,
अब तो भरोसा है खुदा पे,उसकी मेहर देखेंगे
कसम खा लो कि न छुएंगे अपने या पराये को,
वर्ना तो लोग जल्दी ही,मरने की खबर देखेंगे
जो चले थे कभी साथ साथ ज़िंदगी की राहों में
अबतो दूर से ही सबकेसब अंतिम सफऱ देखेंगे
होश में आओ ज़रा सा अभी भी वक़्त है ‘मिश्र’,
वरना तो तेरे अपने भी,बस इधर उधर देखेंगे